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गोविन्द- दामोदर-स्तोत्र
 
( ६५ )
जिन्होंने पृथ्वीका भार उतारनेके लिये सुन्दर ग्वालका रूप धारण किया है और आनन्दमयी लीला करनेके निमित्त ही शेषजीको अपना भाई बनाया है, ऐसे उन नटनागर के 'गोविन्द ! दामोदर ! माधव !' - इस नामामृतका है जिह्वे ! तू निरन्तर पान करती रह।
 
( ६६ )
जो पूतना, बकासुर, अघासुर और धेनुकासुर आदि राक्षसोंके शत्रु हैं और केशी तथा तृणावर्तको पछाड़नेवाले हैं, हे जिह्वे ! उन असुरारि मुरारिके 'गोविन्द ! दामोदर ! माघव !' - इस नामामृतका तू निरन्तर पान करती रह्
 
( ६७ )
'हे जानकीजीवन भगवान् राम ! हे दैत्यदलन भरताग्रज ! हे ईश ! हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव !' - इस नामामृतका है जिहे ! तू निरन्तर पान करती रह ।
 
(६८)
हे प्रह्लादकी बाधा हरनेवाले दयामय 'नृसिंह ! नारायण ! अनन्त ! हरे ! गोविन्द ! दामोदर ! माधव !' - इस नामामृतका हे जिह्वे ! तू निरन्तर पान करती रह ।
 
( ६९ )
हे जिह्वे ! जिन्होंने लीलाहीसे मनुष्योंकी-सी आकृति बनाकर, रामरूप प्रकट किया है और अपने प्रबल पराक्रमसे सभी भूपोंको दास बना लिया है, तू उन नीलाम्बुज श्यामसुन्दर श्रीराम के 'गोविन्द ! दामोदर ! माधव !' -- इस नामामृतका ही निरन्तर पान करती रह ।