2023-02-27 02:59:46 by Sayan Chatterjee
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गोविन्द-दामोदर -स्तोत्र
(७५५ )
हे जिहे ! 'गोविन्द ! गोविन्द ! हरे ! मुरारे ! गोविन्द ! गोविन्द ! गोविन्द ! रथाङ्गपाणे ! - इन नामोंको तू सदा जपती रह ।
( ५६ )
सुखके अन्तमें यही सार है, दुःखके अन्तमें यही जानने योग्य है और शरीरका अन्त होनेके समय भी यही मन्त्र जपने योग्य है, कौन-सा मन्त्र ? यही कि 'हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव !'
(५७)
दुःशासनके दुर्निवार्य वचनोंको स्वीकारकर मृगीके समान
भयभीत हुई द्रौपदी किसी-किसी तरह सभामें प्रवेशकर मन-ही-मन 'गोविन्द ! दामोदर ! माधव !' इस प्रकार भगवान्का स्मरण करने लगी । गोविन्द ! मुकुन्द ! कृष्ण ! गोविन्द ! दामोदर ! माधव !'
(५८)
हे जिह्रे ! तू श्रीकृष्ण ! राधारमण ! ब्रजराज ! गोपाल ! गोवर्धन ! विष्णो ! गोविन्द ! दामोदर ! माघव ! इस नामामृतका निरन्तर पान करती रह ।
( ५९ )
हे जिह्रे ! तू श्रीनाथ ! सर्वेश्वर ! श्रीविष्णुस्वरूप ! श्रीदेवकी - नन्दन ! असुरनिकन्दन ! गोविन्द ! दामोदर ! माधव ! इस नामामृत - का निरन्तर पान करती रह ।
(
हे जिहे ! 'गोविन्द ! गोविन्द ! हरे ! मुरारे ! गोविन्द ! गोविन्द ! गोविन्द ! रथाङ्गपाणे ! - इन नामोंको तू सदा जपती रह ।
( ५६ )
सुखके अन्तमें यही सार है, दुःखके अन्तमें यही जानने योग्य है और शरीरका अन्त होनेके समय भी यही मन्त्र जपने योग्य है, कौन-सा मन्त्र ? यही कि 'हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव !'
(५७)
दुःशासनके दुर्निवार्य वचनोंको स्वीकारकर मृगीके समान
भयभीत हुई द्रौपदी किसी-किसी तरह सभामें प्रवेशकर मन-ही-मन 'गोविन्द ! दामोदर ! माधव !' इस प्रकार भगवान्का स्मरण करने लगी । गोविन्द ! मुकुन्द ! कृष्ण ! गोविन्द ! दामोदर ! माधव !'
(५८)
हे जिह्रे ! तू श्रीकृष्ण ! राधारमण ! ब्रजराज ! गोपाल ! गोवर्धन ! विष्णो ! गोविन्द ! दामोदर ! माघव ! इस नामामृतका निरन्तर पान करती रह ।
( ५९ )
हे जिह्रे ! तू श्रीनाथ ! सर्वेश्वर ! श्रीविष्णुस्वरूप ! श्रीदेवकी - नन्दन ! असुरनिकन्दन ! गोविन्द ! दामोदर ! माधव ! इस नामामृत - का निरन्तर पान करती रह ।