2023-02-26 16:10:52 by Sayan Chatterjee
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( ७५ )
गोविन्द !
हे जिहे ! 'गोविन्द ! गोविन्द ! हरे ! मुरारे ! गोविन्द !
–
( ५६ )
सुखके अन्तमें यही सार है, दुःखके अन्तमें यही जानने
(५७)
दुःशासनके दुर्निवार्य वचनोंको स्वीकारकर मृगीके समान
भयभीत हुई द्रौपदी किसी-किसी तरह सभामें प्रवेशकर मन-ही-मन
(५८)
हे जिह्रे ! तू श्रीकृष्ण ! राधारमण ! ब्रजराज ! गोपाल !
( ५९ )
हे जिह्रे ! तू श्रीनाथ ! सर्वेश्वर ! श्रीविष्णुस्वरूप ! श्रीदेवकी
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