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गोविन्द-दामोदर-स्तोत्र
 

 
(५०)
 

जो मोहरूपी अन्धकारसे व्याप्त और विषयोंकी ज्वालासे सन्तप्त
 
है, ऐसे अथाह संसाररूपी कृपमें मैं पड़ा हुआ हूँ। हे मेरे मधुसूदन ! हे
गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव ! मुझे अपने हाथका सहारा दीजिये ।

 
( ५१ )
 

हे जिह्वे ! मैं तुझीसे एक भिक्षा माँगता हूँ, तू ही मुझे दे ।
वह यह कि जब दण्डपाणि यमराज इस शरीरका अन्त करने आवें
तो बड़े ही प्रेमसे गद्गद स्वरमें 'हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव !'

इन मञ्जुल नामोंका उच्चारण करती रहना ।
 

 
( ५२ )
 

हे जिह्वे! हे रसज्ञे ! संसाररूपी बन्धनको काटने के लिये तू
सर्वदा 'हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव !' इस नामरूपी मन्त्रका
जप किया कर, जो सुलभ एवं सुन्दर है और जिसे व्यास, वसिष्ठादि
ऋषियोंने भी जपा है ।
 

 
( ५३ )
 

रे जिह्वे ! तू निरन्तर गोपाल ! वंशीधर ! रूपसिन्धो ! लोकेश !
 
नारायण ! दीनबन्धो ! गोविन्द ! दामोदर ! माधव ! इन नामोंका
उच्च स्वरसे कीर्तन किया कर !
 

 
(५४)
 

हे जिह्वे ! तू सदा ही
श्रीकृष्णचन्द्र के 'गोविन्द ! दामोदर !
 
हे जिह्वे ! तू सदा ही
 
माव !' इन मनोहर मञ्जुल नामोंको, जो भक्तोंके समस्त सङ्कटोंकी
 
निवृत्ति करनेवाले हैं, भजती रह ।
 
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