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गोविन्द-दामोदर-स्तोत्र
 
( ४०)
हे रसोंको चखनेवाली जिह्वे ! तुझे मीठी चीज बहुत अधिक प्यारी लगती है, इसलिये मैं तेरे हितकी एक बहुत ही सुन्दर और सच्ची बात बताता हूँ । तू निरन्तर ' हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माघव !' इन मधुर मञ्जुल नामोंकी आवृत्ति किया कर ।
 
(४१ )
वेदवेत्ता विद्वान् 'गोविन्द ! दामोदर ! माधव !' इन नामोंको ही लोगोंकी बड़ी-से-बड़ी विकट व्याधिको विच्छेद करनेवाला वैद्य और संसारके आधिभौतिक, आधिदैविक और आध्यात्मिक तीनों तापोंके नाशका बढ़िया बीज बतलाते हैं ।
 
( ४२ )
अपने पिता दशरथकी आज्ञासे भाई लक्ष्मण और जनकनन्दिनी सीताके साथ श्रीरामचन्द्रजी बीहड़ वनोंके लिये चलने लगे, तब उनकी माता श्रीकौसल्याजी 'हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव ! [ हे राम ! हे रघुनन्दन ! हे राघव ! ] ' ऐसा कहकर जोरोंसे विलाप करने लगीं ।
 
( ४३ )
जब राक्षसराज रावण पञ्चवटीमें जानकीजीको अकेली देख उन्हें हरकर ले जाने लगा तब रामचन्द्रजीके सिवा जिनका दूसरा कोई स्वामी नहीं है ऐसी सीताजी 'हा गोविन्द ! हा दामोदर ! हा माधव ! [ हे राम ! हे रघुनन्दन ! हे राघव ! ]' कहकर जोरोंसे रुदन करने लगीं ।
 
(४४)
रथमें बिठाकर ले जाते हुए रावणके साथ, रामवियोगिनी सीता हृदयमें अपने स्वामी श्रीरामचन्द्रजीका ध्यान करती हुई 'हा रघुनाथ !
हा गोविन्द ! हा दामोदर ! हा माधव ! [हे राम! हे रघुनन्दन ! हे राघव ! मेरी रक्षा करो ]' इस प्रकार रोती हुई जाने लगी ।