2023-02-26 14:25:44 by Sayan Chatterjee
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गोविन्द - दामोदर-स्तोत्र
( २० )
क्रीडाविहारी मुरारि बालकोंके साथ खेल रहे हैं [ अभीतक न
स्नान किया है न भोजन ] अतः प्रेममें विह्वल हुई माता उन्हें स्नान
और भोजनके लिये पुकारने लगी - 'अरे ओ गोविन्द ! ओ दामोदर !
ओ माधव ! [ आ बेटा ! आ ! पानी ठण्डा हो रहा है जल्दी से नहा
!
ले और कुछ खा ले ] ।'
( २१ )
नारद आदि ऋषि 'हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव !'
इस प्रकार प्रार्थना करते हुए घर में सुखपूर्वक सोये हुए उन पुराण-
पुरुष बालकृष्ण की शरणमे आये; अतः उन्होंने श्रीअच्युतमें तन्मयता
प्राप्त कर ली ।
( २२ )
वेदज्ञ ब्राह्मण प्रातःकाल उठकर और अपने नित्यनैमित्तिक
कमको पूर्णकर वेदपाठके अन्त में नित्य ही 'गोविन्द ! दामोदर !
माधव !' इन मञ्जुल नामोंका कीर्तन करते हैं ।
( २३ )
वृन्दावनमें श्रीवृषभानुकुमारीको बनवारीके वियोगसे विह्वल
देख गोपगण और गोपियाँ अपने कमलनयनोंसे नीर बहाती हुई
'हा गोविन्द ! हा दामोदर ! हा माघव !' आदि कहकर पुकारने
लगीं ।
( २४ )
प्रातःकाल होनेपर जब गौएँ वनमें चरने चली गयीं तब
उनकी रक्षा के लिये यशोदा मैया शय्यापर शयन करते हुए बालकृष्ण-
को मीठी-मीठी थपकियोंसे जगाती हुई बोलीं- 'बेटा गोबिन्द !
मुन्ना माधव ! लल्लू दामोदर ! [ उठ, जा गौओंको चरा ला ] ।'
[ ११
( २० )
क्रीडाविहारी मुरारि बालकोंके साथ खेल रहे हैं [ अभीतक न
!
( २१ )
नारद आदि ऋषि 'हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव !'
( २२ )
वेदज्ञ ब्राह्मण प्रातःकाल उठकर और अपने नित्यनैमित्तिक
( २३ )
वृन्दावनमें श्रीवृषभानुकुमारीको बनवारीके वियोगसे विह्वल
लगीं ।
( २४ )
प्रातःकाल होनेपर जब गौएँ वनमें चरने चली गयीं तब
[ ११