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गोविन्द-दामोदर-स्त्रोत्र
 
( १० )
अपनी गोदमें बैठकर दूध पीते हुए बालगोपालरूपधारी भगवान् लक्ष्मीकान्तको लक्ष्य करके प्रेमानन्दमें मग्न हुई यशोदामैया
इस प्रकार बुलाया करती थीं - 'ऐ मेरे गोविन्द ! ऐ मेरे दामोदर !
ऐ मेरे माधव ! ज़रा बोलो तो सही ?'
 
( ११ )

अपने समवयस्क गोपचालकोंके साथ गोष्ठ में खेलते हुए अपने
प्यारे पुत्र कृष्णको यशोदामैयाने अत्यन्त स्नेहके साथ पुकारा -
'अरे ओ गोविन्द ! ओ दामोदर ! अरे माधव ! [कहाँ चला गया ? ] '

( १२ )

अधिक चपलता करनेके कारण यशोदामैयाने गौ बाँधनेकी
रस्सीसे खूब कसकर ओखलीमें उन घनश्यामको बाँध दिया, तब तो
वे माखनभोगी कृष्ण धीरे-धीरे [ आँखें मलते हुए ] सिसक-सिसककर
'गोविन्द ! दामोदर ! माधव !' कहते हुए रोने लगे ।
 
( १३ )

श्रीनन्दनन्दन अपने ही घरके आँगन में अपने हाथके कंकणसे
खेलने में लगे हुए हैं, उसी समय मैयाने धीरेसे जाकर उनके दोनों
कमलनयनोंको अपनी हथेलीसे मूँद लिया तथा दूसरे हाथमें नवनीत
का गोला लेकर प्रेमपूर्वक कहने लगी - 'गोविन्द ! दामोदर ! माधव !
[ लो देखो, यह माखन खा लो ] ।'
 
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( १४ )

व्रजके प्रत्येक घरमें गोपाङ्गनाएँ एकत्र होनेका अवसर पानेपर
झुण्ड -की -झुण्ड आपस में मिलकर उन मनमोहन माघवके 'गोविन्द,
दामोदर, माघव' इन पवित्र नामोंको पढ़ा करती हैं ।
 
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