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आशीर्वचन
 

 
शब्दकोश का निर्माण जितना कठिन है, उसका उपयोग उतना ही

महत्वपूर्ण है । संस्कृत, प्राकृत, अंग्रेजी, हिन्दी, राजस्थानी आदि सभी भाषाओं

के शब्दकोश उपलब्ध हैं । आचार्य हेमचन्द्र ने संस्कृत शब्दकोश अभिधान-

चिन्तामणि के साथ देशी नाममाला की भी रचना की। इसके अतिरिक्त देशी

शब्दों का कोई स्वतंत्र कोश प्राप्त नहीं है। आगम और उसके व्याख्या

साहित्य में प्राकृत के साथ देशी शब्दों का प्रचुर मात्रा में प्रयोग मिलता

है । उस साहित्य के देशी शब्दों का चयन करना और उनके प्रामाणिक

अर्थ का निर्णय करना काफी दुरूह काम था । पर हमारे आगम सम्पादन

कार्य में संलग्न साधु-साध्वियां कठिन काम करने के अभ्यस्त हो चुके हैं । इस

काम के लिए हमने विशेष रूप से साध्वियों को निर्देश दिया। लगभग पांच

वर्ष के बाद उनके श्रम ने एक रूप लिया और 'देशी शब्दकोश' सुसम्पादित होकर

सामने आ गया । इस कार्य में प्रवृत्त साध्वी अशोकश्री, विमलप्रज्ञा, और

सिद्धप्रज्ञा तथा समणी कुसुमप्रज्ञा के श्रम को संवारने में मुनि दुलहराज ने पूरा

समय लगाया । वह इस काम के साथ नहीं जुड़ता तो संभव है इसकी निष्पत्ति

में कुछ और अवरोध आ जाता । मुझे प्रसन्नता है कि हमारे विनीत साधु-

साध्वियां पूरे मनोयोग के साथ साहित्य-सेवा अथवा धर्म शासन की सेवा में

संलग्न हैं। उनकी कार्यजाशक्ति निरन्तर विकसित होती रहे, इस शुभाशंसा

के साथ मैं इस ग्रन्थ की समीक्षा का काम विद्वानों को सौंपता हूं ।
 

 
- आचार्य तुलसी
 

 
१६ फरवरी, १९८८

भिवानी (हरियाणा)
 

 
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