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परिशिष्ट २
 
ओरथ ( स्थग् ) - ढकना ।
 
ओप्प - शाण आदि पर घर्षण करना ।
 
ओबभाल - सूप आदि से धान्य साफ करना ।
 
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ओयव - सिद्ध करना - 'सिंधुदेवीं ओयवेइ' (आवटिप २० ) ।
ओरंप- १ छीलना । २ नष्ट करना ।
 
ओरस (अव + तु) – नीचे उतरना ( प्रा ४८८५) ।
 
ओरुम्मा ( उद् + वा ) – सूखना, शुष्क होना ( प्रा ४५११) ।
ओलंड (उत् + लङ्घ)
 
ओल्लर - शयन करना ।
ओल्लुड्डु ( वि + रेचय् )
ओवग्ग (अव + क्रम् )
 
ओलग्ग – सेवा करना ।
 
ओलि - घर के चारों ओर घूमना- 'ओलितित्ति गृहाणि प्रति परिभ्रमन्ति'
(आवहाटी १पृ१८३३) ।
 
ओलिंप - खोलना (पिनि ३५४ ) ।
 
ओलुंड ( वि + रेचय् ) – झरना, टपकना ( प्रा ४।२६ ) ।
 
ओलुह-अवरोहण करना, नीचे उतरना (आवहाटी १ पृ १२१ ) ।
ओले - घर के चारों ओर घूमना- 'णीयं च कागा ओलेंति जाया भिक्खस्स
हरहरा' (आवहाटी १ पृ १८३ ) ।
 
- उल्लंघन करना, लांघना- 'अप्पेगइया मेहं कुमारं
हत्थेहि संघट्टेति... .अप्पेगइया ओलंडेंति....'
(ज्ञा १ । १ । १५३ ) ।
 
– विरेचन करना ।
 
ओवास (अव + काश )
 
-१ व्याप्त करना ( से ३।११) । २ ढकना,
आच्छादित करना ( से ४१२५ ) ।
- शोभित होना ( प्रा ४११७६) ।
ओवाह (अव + गाह) - हृदयंगम करना ( प्रा ४ । २०५ ) ।
ओवेड - १ निक्षिप्त करना, रखना (ओटीप १६ ) । २ फेंकना
( ओटीप ३५ ) ।
 
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ओठवाल ( प्लावय् ) – प्लावित करना ।
 
ओसर ( अव + तू ) ––१ उतरना । २ अवतरित होना, जन्म लेना ।
ओसिंघाव-संघाना - सो भीतो अण्णं पुरिसं तं चुण्णगं ओसिंघावेति'
( दअचू पृ ४३ ) ।
 
ओसिर - परित्याग करना ।
 
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