देशीशब्दकोश /574
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परिशिष्ट-
- २
देशी धातु-चयनिका
[ इस परिशिष्ट में देशी धातुओं तथा आदेश प्राप्त धातुओं का चयन
किया गया है । आगम, उनके व्याख्याग्रंथों तथा प्राकृत व्याकरण की धातुएं
सप्रमाण एवं क्वचित् ससन्दर्भ संगृहीत हैं । त्रिविक्रम व्याकरण, पाइअसद्द-
महण्णवो तथा कुछ अन्य प्राकृतग्रंथों से गृहीत धातुएं बिना प्रमाण के संकलित
हैं । आदेश प्राप्त धातुओं के संस्कृत धातु रूप भी कोष्ठक में दे दिए गए हैं । ]
अ
अ
अइच्छ ( गम् ).
-
-- गमन करना ( प्रा ४।१६२) ।
) ।
अइच्छ ( अति + क्रम् ) – उल्लंघन करना ( ओनि ५१८) ।
) ।
अइमल्ह–-- धीमे चलना ।
अई ( गम् )–-- गमन करना, जाना ( प्रा ४।१६२) ।
) ।
अंगुम ( पूरय् ) -- पूरा करना ( प्रा ४१।१६६ ) ।
९ ) ।
अंगोहल–-- स्नान करना ( व्यभा १० टी प ५२ ) ।
अंच ( कृष्) ) -- १ खींचना ( दश्रु ८१।१० ) । २ खेती करना । ३ रेखा करना
( ( प्रा ४१।१८७ ) ।
अंच -- झुकाना - 'अंचेति त्ति वा णामेति त्ति वा एगट्ठ' (ठं' ( सूचू १ पृ २४० ) ।
अंछ ( कृष्) – ) -- १ खींचना - 'अंछंति वासुदेवं अगडतडम्मि ठियं संतं'
( ( विभा ७६९४ ) । २ लम्बा होना ( विभा ७६९५) ।
– ) ।
अंछाव ( कृष् ) -- खींचना - 'अब्भंतरियं जवणियं अंछावेइ'
( भ ११।१३८ ) ।
अंछाव (कृष्)
अंछि–-- निकालना, आकर्षण करना ( आवहाटी १ पृ १५१ ) ।
अंबाड ( तिरस् + कृ) ) -- तिरस्कार करना ( उसुटी प २ ) ।
अंबाड ( खरण्ट् )–-- लेप करना - 'चमढेति खरण्टेति अंबाडेति त्ति वुत्तं भवति'
( निचू ४) ।
) ।
अकु.
-- 'खाना - 'अकु भक्षणे' (आचू पृ ३४४) ।
अक्कुस ( गम् ) -- गमन करना, जाना ( प्रा ४ । ।१६२ ) ।
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देशी धातु-चयनिका
[ इस परिशिष्ट में देशी धातुओं तथा आदेश प्राप्त धातुओं का चयन
अ
अ
अइच्छ ( गम् )
-
अइच्छ ( अति + क्रम् ) – उल्लंघन करना ( ओनि ५१८
अइमल्ह
अई ( गम् )
अंगुम ( पूरय् ) -- पूरा करना ( प्रा ४
अंगोहल
अंच ( कृष्
(
अंच -- झुकाना - 'अंचेति त्ति वा णामेति त्ति वा एगट्
अंछ ( कृष्
(
–
अंछाव ( कृष् ) -- खींचना - 'अब्भंतरियं जवणियं अंछावेइ'
अंछाव (कृष्)
अंछि
अंबाड ( तिरस् + कृ
अंबाड ( खरण्ट् )
अकु
अक्कुस ( गम् ) -- गमन करना, जाना ( प्रा ४
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