2023-09-06 02:32:26 by श्री अयनः चट्टोपाध्यायः

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परिशिष्ट-
- २
देशी धातु-चयनिका
 

 
[ इस परिशिष्ट में देशी धातुओं तथा आदेश प्राप्त धातुओं का चयन
किया गया है । आगम, उनके व्याख्याग्रंथों तथा प्राकृत व्याकरण की धातुएं
सप्रमाण एवं क्वचित् ससन्दर्भ संगृहीत हैं । त्रिविक्रम व्याकरण, पाइअसद्द-
महण्णवो तथा कुछ अन्य प्राकृतग्रंथों से गृहीत धातुएं बिना प्रमाण के संकलित
हैं । आदेश प्राप्त धातुओं के संस्कृत धातु रूप भी कोष्ठक में दे दिए गए हैं । ]
 

 

 

 
अइच्छ ( गम् ).
 
-
 
-- गमन करना ( प्रा ४।१६२) ।
 
) ।
अइच्छ ( अति + क्रम् ) – उल्लंघन करना ( ओनि ५१८) ।
) ।
अइमल्ह -- धीमे चलना ।
 

अई ( गम् ) -- गमन करना, जाना ( प्रा ४।१६२) ।
) ।
अंगुम ( पूरय् ) -- पूरा करना ( प्रा ४१६६ ) ।
९ ) ।
अंगोहल -- स्नान करना ( व्यभा १० टी प ५२ ) ।
 

अंच ( कृष्) ) -- १ खींचना ( दश्रु ८१० ) । २ खेती करना । ३ रेखा करना
(
( प्रा ४१८७ ) ।
 

अंच -- झुकाना - 'अंचेति त्ति वा णामेति त्ति वा एगट्ठ' (ठं' ( सूचू १ पृ २४० ) ।

अंछ ( कृष्) – ) -- १ खींचना - 'अंछंति वासुदेवं अगडतडम्मि ठियं संतं'
 
(
( विभा ७ ) । २ लम्बा होना ( विभा ७) ।
) ।
अंछाव ( कृष् ) --
खींचना - 'अब्भंतरियं जवणियं अंछावेइ'
( भ ११।१३८ ) ।
 
अंछाव (कृष्)
 

अंछि -- निकालना, आकर्षण करना ( आवहाटी १ पृ १५१ ) ।
 

अंबाड ( तिरस् + कृ) ) -- तिरस्कार करना ( उसुटी प २ ) ।

अंबाड ( खरण्ट् ) -- लेप करना - 'चमढेति खरण्टेति अंबाडेति त्ति वुत्तं भवति'
( निचू ४) ।
 
) ।
अकु.
 
-- 'खाना - 'अकु भक्षणे' (आचू पृ ३४४) ।

अक्कुस ( गम् ) -- गमन करना, जाना ( प्रा ४१६२ ) ।
 
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