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पंचांग प्रणति
 
विक्रम संवत् २०४० । नाथद्वारा की ऐतिहासिक भूमि । मर्यादा
महोत्सव की सम्पन्नता । एक गोष्ठी का आयोजन । इसका उद्देश्य था आगम
के कार्य को गति देना । उसी समय आचार्य श्री ने मुझे तथा कुछ साध्वियों
को लाडनूं भेजा । एक दिन ग्रन्थागार में जब मैंने साध्वियों, समणियों एवं
मुमुक्षु बहिनों द्वारा किए गए आगम कार्य के विविध पहलुओं को देखा तो
चिन्तन उभरा कि इस बिखरे कार्य को समेटना आवश्यक है । उस समय तीन
कोशों को सम्पन्न करने का निश्चय किया। एकार्थक कोश और निरुक्तकोश
तो उसी वर्ष प्रकाश में आ गए। देशी शब्दकोश का कार्य चालू था । देशी
शब्दों के चयन और अर्थ-निर्धारण के लिए शताधिक ग्रन्थों का अवलोकन
आवश्यक था । अन्यान्य बाधाओं के कारण कार्य में गति नहीं आ सकी । कार्य
स्थगित कर दिया गया । वि० सं० २०४३ के लाडनूं चातुर्मास में फिर कार्य
प्रारम्भ किया, पर उसका नैरन्तर्य नहीं रहा । वि० सं० २०४५ का पूरा वर्ष
(२०४४ चैत्र शुक्ला १ से २०४५ चैत्र शुक्ला १ तक ) इस कार्य की फलश्रुति /
निष्पत्ति का वर्ष रहा । इसमें कार्य की निरन्तरता और सघनता भी रही ।
 
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साध्वी अशोकश्री तथा साध्वी विमलप्रज्ञा इस कार्य में प्रारम्भ से ही
संलग्न रही हैं । कुछेक अनिवार्य कारणों से इन दो वर्षों में इनकी संलग्नता
व्यवहित रही, किन्तु इन दोनों की संपूर्ति कर दी साध्वी सिद्धप्रज्ञा ने । इन्होंने
जिस निष्ठा, उत्साह और आनन्दप्रवणता से कार्य किया वह स्तुत्य है ।
शारीरिक अस्वास्थ्य के बावजूद भी इनका पूरा समय इसी कार्य में नियोजित
रहा । ये तन्मना होकर कोश कार्य के प्रत्येक अवयव की संपूर्ति में संलग्न रहीं ।
इस कार्य से इन्होंने अपनी उपादेयता को बरकरार रखा । विधि-विधान के
अनुसार आने-जाने में इन्हें एक साध्वी का सहयोग अपेक्षित था और वह
अपेक्षा पूरी की साध्वी सूरजकुमारी ने । वे प्रसन्नता से इनके साथ आतीं और
अपना पूरा समय आगम-स्वाध्याय में बितातीं । इनकी अनुपस्थिति में पूर्ण
उत्साह एवं प्रसन्नता से सहयोग किया अस्सी वर्षीया साध्वी संवटांजी ने ।
 
साध्वी निर्वाणश्री ने भी प्रारम्भ में कुछेक ग्रन्थों के देशी शब्द-चयन
में सहयोग दिया है ।
 
समणी कुसुमप्रज्ञा प्रारम्भ से ही देशी शब्द - संकलन में संलग्न रही हैं ।
इस बार लगभग ८-१० माह का अधिकांश समय इस देशी शब्दकोश को
संवारने में लगाया । कोश की समायोजना में इनका सहयोग बहुत मूल्यवान है ।
समणी नियोजिका मधुरप्रज्ञा ने समणी श्रुतप्रज्ञा को इनके साथ नियोजित कर
इनके कार्य को सुगम बना डाला । समणी श्रुतप्रज्ञा ने अपने समय का पूरा
उपयोग किया और पूर्ण प्रसन्नता और उत्साह से सहयोग दिया । इनकी
अनुपस्थिति में अन्यान्य समणियों का नियोजन भी रहा और सभी ने कर्तव्य-
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