देशीशब्दकोश /492
This page has not been fully proofread.
देशी शब्दकोश
सुवण्णा – संकेत (दे ८।३७) ।
सुव्व - तांबा - जेण कणयं ति चितियं सुव्वं जायं' ( कु पृ १९५ ) ।
सुब्विआ - माता (दे ८१३८) ।
सुसंठिआ- शूलाप्रोत मांस (दे८३६) ।
सुहउत्थिआ - दूती (दे८) ।
सुहरा - गोरैया पक्षी, सुघरा, वह पक्षि-विशेष जिसके घोंसले का मुंह नीचे की
ओर होता है (दे८३६) ।
सुहराअ - १ वेश्यागृह । २ चटक, गोरैया पक्षी (दे८५६) ।
सुहल्ली - सुख, आनन्द (८१३६ वृ) ।
सुहिल्लि -- आनन्द ( कु पृ ८३ ) ।
-
सुहिल्लिया - सुख,
-
आनन्द - 'न लहइ जहा लिहंतो सुहिल्लियं अट्ठियं सं
सुणओ' (भत्त १४२ ) ।
सुहेल्लि - सुख ( दे ८१३६ ) ।
सुअरिक्षा- यन्त्र-पीडन (ये ८४१ वृ) ।
सूअरी – यन्त्र-पीडन ( दे ८॥४१ ) ।
--
सूअल – किशारु, जौ आदि का अग्रभाग (दे ८।३८)।
सूइअ -- चण्डाल (दे८३३१) ।
४२३
सूइत-प्रोत, पिरोया हुआ - सुत्तेण सुइत त्ति य अत्था तह सुइता य जुत्ता य
(सूचू १ पृ १२) ।
सूइय-भीगा हुआ खाद्य (आ ॥४।१३) ।
सूई – मञ्जरी (दे ८१४१) ।
सूकमंड – कृमि - विशेष - तत्थ किमिगत आसातिका किमिका........सूकमिडा
वेति एवमादयो विण्णेया भवंति' ( अंवि पृ २२६ ) ।
सूकमिद्द – क्षुद्र जंतु- विशेष ( अंवि पृ २३० ) ।
सूडण – विनाशक (प्रसा १५१४) ।
सूतय - तोता, शुक्र- 'मायादोण रुक्कोट्टरे सूतओ जाओ'
(आवहाटी १ पृ २६४) ।
सूदी - परिमाण- विशेष, एक अंगुल लंबी एक प्रदेश वाली श्रेणी - पयरघणा
सब्वेसी सेढी सूदी य आयत - विसेसो' (सूचू १ पृ ८ ) ।
समालिया - तैल का किट्ट (बृभा १७१०) ।
सूय – सूजन युक्त - 'सूयमुहं सूयहत्थं सूयपायं' (विपा १।७।७) ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
सुवण्णा – संकेत (दे ८।३७) ।
सुव्व - तांबा - जेण कणयं ति चितियं सुव्वं जायं' ( कु पृ १९५ ) ।
सुब्विआ - माता (दे ८१३८) ।
सुसंठिआ- शूलाप्रोत मांस (दे८३६) ।
सुहउत्थिआ - दूती (दे८) ।
सुहरा - गोरैया पक्षी, सुघरा, वह पक्षि-विशेष जिसके घोंसले का मुंह नीचे की
ओर होता है (दे८३६) ।
सुहराअ - १ वेश्यागृह । २ चटक, गोरैया पक्षी (दे८५६) ।
सुहल्ली - सुख, आनन्द (८१३६ वृ) ।
सुहिल्लि -- आनन्द ( कु पृ ८३ ) ।
-
सुहिल्लिया - सुख,
-
आनन्द - 'न लहइ जहा लिहंतो सुहिल्लियं अट्ठियं सं
सुणओ' (भत्त १४२ ) ।
सुहेल्लि - सुख ( दे ८१३६ ) ।
सुअरिक्षा- यन्त्र-पीडन (ये ८४१ वृ) ।
सूअरी – यन्त्र-पीडन ( दे ८॥४१ ) ।
--
सूअल – किशारु, जौ आदि का अग्रभाग (दे ८।३८)।
सूइअ -- चण्डाल (दे८३३१) ।
४२३
सूइत-प्रोत, पिरोया हुआ - सुत्तेण सुइत त्ति य अत्था तह सुइता य जुत्ता य
(सूचू १ पृ १२) ।
सूइय-भीगा हुआ खाद्य (आ ॥४।१३) ।
सूई – मञ्जरी (दे ८१४१) ।
सूकमंड – कृमि - विशेष - तत्थ किमिगत आसातिका किमिका........सूकमिडा
वेति एवमादयो विण्णेया भवंति' ( अंवि पृ २२६ ) ।
सूकमिद्द – क्षुद्र जंतु- विशेष ( अंवि पृ २३० ) ।
सूडण – विनाशक (प्रसा १५१४) ।
सूतय - तोता, शुक्र- 'मायादोण रुक्कोट्टरे सूतओ जाओ'
(आवहाटी १ पृ २६४) ।
सूदी - परिमाण- विशेष, एक अंगुल लंबी एक प्रदेश वाली श्रेणी - पयरघणा
सब्वेसी सेढी सूदी य आयत - विसेसो' (सूचू १ पृ ८ ) ।
समालिया - तैल का किट्ट (बृभा १७१०) ।
सूय – सूजन युक्त - 'सूयमुहं सूयहत्थं सूयपायं' (विपा १।७।७) ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org