देशीशब्दकोश /489
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देशी शब्दकोश
सोसक्क - शिरस्राण, शिर की रक्षा के लिए पहना जाने वाला फौलादी टोप
-
(दे ८३३४) ।
सीसपुच्छ–पीठ की चमड़ी (सूनि ६८ ) ।
सीसय – प्रवर, श्रेष्ठ (दे ८॥३४) ।
सोहंडअ – मत्स्य ( दे ८।२८) ।
सोहकेसरय – विशेष प्रकार के मोदक (पिनि ४६१) ।
सीहणही – १ करमन्दिका, करौंदी का वृक्ष ( दे ८३५) । २ करौंदी का
पुष्प- 'सीहणही करमन्दिका । तत्कुसुममित्यन्ये' ( वृ ) ।
सोहपुच्छ – पीठ की चमड़ी- कप्पति कागणीमंसगाणि छिदंति सीहपुच्छाणि
( सूनि ७७) ।
सोहरअ - आसार, तेजवर्षा (८१२) ।
सोहलय - वस्त्र आदि को धूपित करने का यन्त्र (दे ८।३४) ।
सोहलिआ - १ शिखा, चोटी । २ नवमालिका, नवारी का गाछ
(दे ८॥५५ ) ।
-
सोहलिपासग – वेणी बांधने के लिए काम में आने वाला ऊन या स्वर्ण का
कंकण (सू ११४५४२) ।
सुअणा- अतिमुक्तक वृक्ष (८३८ ) ।
सुई- बुद्धि (८३६ ) ।
संकय – किशारु, जौ आदि का अग्रभाग (दे८१३८ वृ) ।
सुंकल - किशारु, धान्य आदि का अंग्रभाग ( दे ८३८ ) ।
companies in set
मुंकलि- तृण- विशेष ( भ २१११६ ) ।
संकलिकडय – क्रीडा - विशेष - यह खेल वृक्ष को केन्द्र मानकर खेला जाता है ।
खेलने वाले सभी बच्चे वृक्ष की ओर दौड़ते हैं । जो बच्चा
सबसे पहले वृक्ष पर चढ़कर उतर आता है, वह विजेता
माना जाता है । विजेता बच्चा पराजित बच्चों के कंधों पर
बैठकर दौड़ के प्रारम्भ बिन्दु तक जाता है - भगवं च यमद-
वणे चेडरूवेहि समं सुकलिकडएण अभिरमति'
(आवचू १ पृ २४६ ) ॥
संग- वर्षात्राण के उपकरण का एक प्रकार - वालो सुत्तो सुंगो'
( जीविप पृ १७) ।
संघिअ— घात, सूंघा हुआ (दे ८॥३७) ।
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देशी शब्दकोश
सोसक्क - शिरस्राण, शिर की रक्षा के लिए पहना जाने वाला फौलादी टोप
-
(दे ८३३४) ।
सीसपुच्छ–पीठ की चमड़ी (सूनि ६८ ) ।
सीसय – प्रवर, श्रेष्ठ (दे ८॥३४) ।
सोहंडअ – मत्स्य ( दे ८।२८) ।
सोहकेसरय – विशेष प्रकार के मोदक (पिनि ४६१) ।
सीहणही – १ करमन्दिका, करौंदी का वृक्ष ( दे ८३५) । २ करौंदी का
पुष्प- 'सीहणही करमन्दिका । तत्कुसुममित्यन्ये' ( वृ ) ।
सोहपुच्छ – पीठ की चमड़ी- कप्पति कागणीमंसगाणि छिदंति सीहपुच्छाणि
( सूनि ७७) ।
सोहरअ - आसार, तेजवर्षा (८१२) ।
सोहलय - वस्त्र आदि को धूपित करने का यन्त्र (दे ८।३४) ।
सोहलिआ - १ शिखा, चोटी । २ नवमालिका, नवारी का गाछ
(दे ८॥५५ ) ।
-
सोहलिपासग – वेणी बांधने के लिए काम में आने वाला ऊन या स्वर्ण का
कंकण (सू ११४५४२) ।
सुअणा- अतिमुक्तक वृक्ष (८३८ ) ।
सुई- बुद्धि (८३६ ) ।
संकय – किशारु, जौ आदि का अग्रभाग (दे८१३८ वृ) ।
सुंकल - किशारु, धान्य आदि का अंग्रभाग ( दे ८३८ ) ।
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मुंकलि- तृण- विशेष ( भ २१११६ ) ।
संकलिकडय – क्रीडा - विशेष - यह खेल वृक्ष को केन्द्र मानकर खेला जाता है ।
खेलने वाले सभी बच्चे वृक्ष की ओर दौड़ते हैं । जो बच्चा
सबसे पहले वृक्ष पर चढ़कर उतर आता है, वह विजेता
माना जाता है । विजेता बच्चा पराजित बच्चों के कंधों पर
बैठकर दौड़ के प्रारम्भ बिन्दु तक जाता है - भगवं च यमद-
वणे चेडरूवेहि समं सुकलिकडएण अभिरमति'
(आवचू १ पृ २४६ ) ॥
संग- वर्षात्राण के उपकरण का एक प्रकार - वालो सुत्तो सुंगो'
( जीविप पृ १७) ।
संघिअ— घात, सूंघा हुआ (दे ८॥३७) ।
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