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साहित्य एवं कोशों में भी मिलते हैं, किन्तु ये शब्द क्षेत्र विशेष में प्रचलित
भाषाओं के हैं । बाद में इनका संस्कृत साहित्य में प्रयोग होने लगा । इसी
प्रकार वारक / वारग शब्द संस्कृत में घड़े के लिए प्रसिद्ध है किन्तु यह शब्द
मरुधर देश में मंगलघट के अर्थ में प्रसिद्ध था – 'वारकः मरुदेशप्रसिद्धनाम्ना
मांगल्यघटः ।'
 
पण्णवणा सूत्र में अनेक जीव-जंतुओं एवं वनस्पतियों का नामोल्लेख
हुआ है। उनकी पहचान को कठिन बताते हुए स्वयं टीकाकार कहते हैं-
देशतोऽवसेयाः । सम्प्रदायादवसेयः । लोकप्रतीतः । रूढ़िगम्यम् आदि ।
 
जहां हमें नाम के बारे में निश्चित जानकारी मिली उसका नामोल्लेख
किया है । अन्यथा वनस्पति- विशेष, लता-विशेष, पुष्प- विशेष का उल्लेख किया
है । इसी प्रकार आभूषणों के बारे में भी आभूषण- विशेष का उल्लेख किया
 
है।
 
इस कोश में ऐसे अनेक देशी शब्द
सभ्यता एवं संस्कृति पर प्रकाश डालते हैं ।
 
संकलित हैं जो प्राचीन भारत की
जैसे-
आवाह, विवाह, आहेणग, पहेणग, गिरिजन, करडुयभत्त, मडगगिह,
एमिणिआ, अण्णाण, आणंदवड, वहूपोत्ति, भोयडा आदि आदि शब्द सामाजिक
रीति-रिवाजों एवं परम्पराओं के संवाहक हैं। अधिक्कमणक, अवयार,
इंदड्ढलय आदि शब्द उत्सवों तथा अइराणी, इंदियाली, उंत, उयणिसय,
टिल, विंटल आदि शब्द विशेष अनुष्ठानों एवं मंत्रों के वाचक हैं ।
 
अप्पसत्थभ, आपुरायण, आमोसल, कंडूसी, ककितजाण, गल्लोल आदि
अनेक शब्द विविध गोत्रों के वाचक हैं ।
 
इसी प्रकार नानाप्रकार के शिल्पकर्म, पुस्तकें, जातियां, सिक्के, यान-
वाहन, शस्त्र, रोग, खेल, जाल, वाद्य, वेशभूषा, खानपान, घर के अवयव,
घरेलु उपकरण, पारिवारिक सम्बंध आदि के संसूचक सैंकड़ों शब्द इस कोष में
संगृहीत हैं ।
 
अमोसली, कडजुम्म, उग्गह, अमुदग्ग, किट्टि, णिगोद, फड्डुग, पउट्ट-
परिहार आदि पारिभाषिक शब्द भी इसमें संग्रहीत हैं ।
 
इस कोश में अनेक एकार्थक देशी शब्दों का संकलन है । जैसे – छोटी
तलाई के वाचक तीन शब्द हैं – खल्लर खिल्लूर छिल्लर शब्दा देश्या
एकार्थकाः ।
 
इसी प्रकार और भी उदाहरण द्रष्टव्य हैं-
१. विदग्ध - छलिआ छइल्ल छप्पण्ण ।
 
२. मां- अल्ला अव्वा अम्मा ।
 
३. दुष्टघोडा – तंडीति वा गलीति वा मरालीति वा एगट्ठा ।
४. पैबंद-पडियाणिया थिग्गलयं छंदतो य एगट्ठे ।
 
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