देशीशब्दकोश /46
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प्रस्तुत कोश की विशेषता
एक ही अर्थ के वाचक भिन्न शब्दों के संदर्भ में अन्य कोशों की भांति
'देखो' का निर्देश न कर पाठक की सुविधा के लिए उस शब्द का अर्थ वहीं दे
दिया गया है। कहीं-कहीं शब्द के अर्थ की विस्तृत जानकारी तथा तुलना की
दृष्टि से दो-चार स्थानों पर 'देखो' का निर्देश भी किया है। जैसे—
आणंदवड --- देखें वहूपोत्ति । उक्कोडभंग – देखें खोडभंग ।
४५
कोशों में कहीं-कहीं एक शब्द का अर्थ देखने के लिए तीन-चार शब्द
देखने पर भी अर्थ नहीं मिलता । पाइयसहमहण्णवो में अनेक स्थलों पर ऐसा
हुआ है । जैसे- पज्जुसवणा देखो पज्जुसणा । पज्जुसणा देखो पज्जोसवणा ।
पलोहिय देखो पलोभिअ । पलोभिअ देखो पलोभविअ । रम्ह देखो रंफ । रंफ
देखो रंप । अनेक स्थलों पर शब्दों के पास-पास आने से पुनरुक्ति दोष-सा
प्रतीत हो सकता है किंतु सुविधा की दृष्टि से हमने सभी शब्दों का अर्थ प्रायः
उनके सामने ही दे दिया है ।
जहां दो समस्त शब्द एक अर्थ के वाचक हैं वहां देशी शब्द को अलग
से प्रदर्शित करने के लिए
चिह्न लगा दिया है, जैसे- -'कन्न 'लइय',
}
'अट्टण' साला आदि ।
इस कोश में अनेक ऐसे शब्द हैं जो अर्थ की दृष्टि से बहुत समृद्ध हैं ।
भिन्न-भिन्न प्रसंगों में उन शब्दों के भिन्न-भिन्न अर्थ मिलते हैं। जैसे- अब्वो,
कडिल्ल, भंड, वल्लर आदि ।
प्रस्तुत कोश में प्रयुक्त ग्रंथों में कुछ ग्रंथ देशी शब्दों की दृष्टि से
अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं । जैसे- अंगविज्जा, भगवती, आवश्यकचूर्णि, कुवलय-
माला, नंदीचूर्ण, निशीथभाष्य एवं चूर्णि, व्यवहार भाष्य, बृहत्कल्पभाष्य
आदि-आदि । इनमें नवीन एवं अप्रचलित देशी शब्दों का प्रयोग हुआ है ।
जैसे— अंबखुज्ज, अक्खु. इद्ध, चोप्प, चोरालि, तेह, वियडासय आदि ।
इस कोश में वनस्पति, जीवजंतु, आभूषण, खाद्यपदार्थ से संबंधित
अनेक ऐसे शब्द हैं जो भिन्न-भिन्न क्षेत्रों से संबंधित हैं । अनेक स्थलों पर
स्वयं व्याख्याकार क्षेत्र विशेष का उल्लेख भी करते हैं। जैसे-
मूयग- मूयग त्ति मेदपाटप्रसिद्धस्तृणविशेषः ।
विरालिया- गोल्लविसए वल्ली ।
धरच्छ मगधकं धराक्षं च रूढिगम्यम् ।
देश विशेष में प्रचलित एवं व्यवहृत होने वाले शब्द देश्य की कोटि
में आते हैं। क्योंकि इनका मूलरूप न संस्कृत में मिलता है और न प्राकृत
में । हमने भी अनेक ऐसे शब्दों का समावेश इसमें किया है जो क्षेत्र विशेष से
संबंधित हैं । जैसे- नारिकेल, ताम्बूल, घोडग आदि । यद्यपि ये शब्द संस्कृत
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एक ही अर्थ के वाचक भिन्न शब्दों के संदर्भ में अन्य कोशों की भांति
'देखो' का निर्देश न कर पाठक की सुविधा के लिए उस शब्द का अर्थ वहीं दे
दिया गया है। कहीं-कहीं शब्द के अर्थ की विस्तृत जानकारी तथा तुलना की
दृष्टि से दो-चार स्थानों पर 'देखो' का निर्देश भी किया है। जैसे—
आणंदवड --- देखें वहूपोत्ति । उक्कोडभंग – देखें खोडभंग ।
४५
कोशों में कहीं-कहीं एक शब्द का अर्थ देखने के लिए तीन-चार शब्द
देखने पर भी अर्थ नहीं मिलता । पाइयसहमहण्णवो में अनेक स्थलों पर ऐसा
हुआ है । जैसे- पज्जुसवणा देखो पज्जुसणा । पज्जुसणा देखो पज्जोसवणा ।
पलोहिय देखो पलोभिअ । पलोभिअ देखो पलोभविअ । रम्ह देखो रंफ । रंफ
देखो रंप । अनेक स्थलों पर शब्दों के पास-पास आने से पुनरुक्ति दोष-सा
प्रतीत हो सकता है किंतु सुविधा की दृष्टि से हमने सभी शब्दों का अर्थ प्रायः
उनके सामने ही दे दिया है ।
जहां दो समस्त शब्द एक अर्थ के वाचक हैं वहां देशी शब्द को अलग
से प्रदर्शित करने के लिए
चिह्न लगा दिया है, जैसे- -'कन्न 'लइय',
}
'अट्टण' साला आदि ।
इस कोश में अनेक ऐसे शब्द हैं जो अर्थ की दृष्टि से बहुत समृद्ध हैं ।
भिन्न-भिन्न प्रसंगों में उन शब्दों के भिन्न-भिन्न अर्थ मिलते हैं। जैसे- अब्वो,
कडिल्ल, भंड, वल्लर आदि ।
प्रस्तुत कोश में प्रयुक्त ग्रंथों में कुछ ग्रंथ देशी शब्दों की दृष्टि से
अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं । जैसे- अंगविज्जा, भगवती, आवश्यकचूर्णि, कुवलय-
माला, नंदीचूर्ण, निशीथभाष्य एवं चूर्णि, व्यवहार भाष्य, बृहत्कल्पभाष्य
आदि-आदि । इनमें नवीन एवं अप्रचलित देशी शब्दों का प्रयोग हुआ है ।
जैसे— अंबखुज्ज, अक्खु. इद्ध, चोप्प, चोरालि, तेह, वियडासय आदि ।
इस कोश में वनस्पति, जीवजंतु, आभूषण, खाद्यपदार्थ से संबंधित
अनेक ऐसे शब्द हैं जो भिन्न-भिन्न क्षेत्रों से संबंधित हैं । अनेक स्थलों पर
स्वयं व्याख्याकार क्षेत्र विशेष का उल्लेख भी करते हैं। जैसे-
मूयग- मूयग त्ति मेदपाटप्रसिद्धस्तृणविशेषः ।
विरालिया- गोल्लविसए वल्ली ।
धरच्छ मगधकं धराक्षं च रूढिगम्यम् ।
देश विशेष में प्रचलित एवं व्यवहृत होने वाले शब्द देश्य की कोटि
में आते हैं। क्योंकि इनका मूलरूप न संस्कृत में मिलता है और न प्राकृत
में । हमने भी अनेक ऐसे शब्दों का समावेश इसमें किया है जो क्षेत्र विशेष से
संबंधित हैं । जैसे- नारिकेल, ताम्बूल, घोडग आदि । यद्यपि ये शब्द संस्कृत
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