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देशी शब्दकोश
 
वियरग - १ नदी आदि जलाशय के सूख जाने पर पानी के लिए किया जाने
वाला गढा (ज्ञा १८११५६) २ कूपिका, छोटाकूप-वियरगोत्ति-
कूविया' (निचू ३ पृ ५८४)।
 
वियरय – १ लघु स्रोत वाला जलाशय जो सोलह हाथ विस्तृत होता है ।
नदी या महागत में इसका संकुचन तीन हाथ विस्तृत होता है
(व्यभा ४।३ टीप ६ ) । २ गत (ज्ञा १।१७।२२) ।
 
वियली – घर के चार कोनों में रखा जाने वाला छोटा स्तंभ - यूणाओ होति
वियली' (निभा ४२६८) ।
 
वियाउया -- पैर फटना, बिवाई - सीतेण वि पव्वीसु वियाउआसु फुट्टती सु
खल्लगादि पुडगे बंधति' ( निचू ३ पृ २३ ) ।
 
विवार - १ विस्तीर्ण - सवियारो त्ति वित्थिन्नो' (बृभा २०२२ चू) ।
२ शौच - स्थान (निचू १ पृ ४४) ।
 
वियाल संध्या- 'वियाले त्ति सन्ध्यायाम्' (विपाटी प ६६ ) ।
वियावड– आकुल (ओटीप १३८ ) ।
 
वियावत्त - जीर्णशीर्ण, अपरिलक्षित-विधावत्तं नाम अव्यक्तमित्यर्थः, भिन्न-
पडियं अपागडं' (आवहाटी १ पृ १५२ ) ।
 
विरमालिय– प्रतीक्षित (पा ५७० ) ।
 
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विरय – १ लघु स्रोत वाला जलाशय जो सोलह हाथ विस्तृत होता है। नदी
या महागर्त में इसका संकुचन तीन हाथ विस्तृत होता है
(व्यमा ४ । ३ टीप ६ ) । २ छोटा जल-प्रवाह ( दे ७१३९) ।
 
विरलि–वस्त्रविशेष, डोरिया ( प्रसाटी प १६१ ) ।
विरली - चतुरिन्द्रिय प्राणी विशेष ( उ ३६।१४७ ) ।
विरल्लिअ - जलार्द्र, जल से भीगा हुआ (दे ७।७१) ।
विरल्लित - विकीर्ण, विस्तारित (स्था ४।५७७) ।
विरल्लिय–विस्तारित - 'जह उल्ला साडीया आसु सुक्कइ विरल्लिया संती'
(विभा
 
विरस - वर्ष (दे ७१६२) ।
 
विरसमुह – काक, क
 

 
विरह – १ एकान्त (विपा ११६ । ३१; दे ७/९१ ) । २ कुसुंभ रंग से रंगा हुआ
 
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वस्त्र (
 
विरहाल-कुसुंभ रंग से रंगा हुआ वस्त्र ( दे ७:६८) ।
विराय – विलीन, पिघल हुआ (पा ८०२) ।
 
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