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में उसका संभावित शुद्ध रूप भी दे दिया है । जैसे—
ओट्टिय (दोट्टिय, दोद्धिय ? )
गोमाणसिया (गोमासणिया ? )
तल्लकट्ट ( तल्लवत्त ? )
तूमणय ( णूमणय ? )
 
जो शब्द आगम एवं
 
मिले हैं, उन शब्दों के दोनों प्रमाण
स्थलों का उल्लेख किया है । जैसे-
आगमेतर ग्रंथों तथा देशीनाममाला दोनों में
 
अइराणी (अंवि पृ २२३; दे १९५५ )
अंगुट्ठी (उसुटी प ५४; दे ११६ )
अणह (ज्ञा ११९१८।२४ ; दे १ । १३ )
 
इसी प्रकार अणुय, पक्खरा, पडिहत्थ, पणवण्ण आदि आदि ।
अनेक स्थलों पर मूलपाठ में प्रसंग से शब्द का अर्थ भिन्न प्रतीत होता
है तथा व्याख्याकार उसका भिन्न अर्थ करते हैं । ऐसी स्थिति में हमने दोनों
अर्थों का सप्रमाण उल्लेख किया है । जैसे—आडोलिया । टीकाकार ने इसका
अर्थ रुद्ध किया है जबकि प्रसंग से उसका अर्थ खिलौना होना चाहिए ।' कन्नड
हिन्दी कोश में आदु-आडु शब्द खेलने के अर्थ में गृहीत है ।
 
इसी प्रकार संपादकों द्वारा किए गए अर्थों पर भी हमने विमर्श किया
है । निशीथचूर्णि का एक शब्द है अत्यभिल्ल । पादटिप्पण में इसका अर्थ शस्त्र-
विशेष किया गया है। शब्द के आधार पर यह अर्थ ठीक भी लगता है - अत्थ
अर्थात् अस्त्र, भिल्ल अर्थात् भाला । वहां जंगली जानवरों के प्रसंग में यह शब्द
आया है, अतः अत्थभिल्ल का अर्थ भालू होना चाहिए ।
 
जिस किसी शब्द के एकाधिक अर्थ हैं उनमें से हमारे द्वारा निरीक्षित
ग्रंथों में प्राप्त अर्थों के प्रमाण प्रस्तुत किए गये हैं। शेष अर्थ हमने
'पाइयसद्दमहण्णवो' से बिना प्रमाण के ग्रहण किए हैं, क्योंकि प्रमाण हमने
उन्हीं ग्रंथों के प्रस्तुत किए हैं, जिनका हमने स्वयं निरीक्षण किया है ।
 
इस कोश में अनेक ऐसे शब्दों का भी संग्रहण है जो देशी हैं या नहीं,
इस दृष्टि से विमर्शणीय हो सकते हैं । किन्तु अन्यान्य विद्वानों तथा कोशकारों
द्वारा वे देशी रूप में मान्य रहे हैं, अतः हमने उनका उसी रूप में संकलन
किया है। इस संकलन का एकमात्र उद्देश्य है कि विभिन्न विद्वानों द्वारा
देशीरूप में स्वीकृत सभी शब्दों की उपलब्धि एक ही ग्रन्थ में हो जाए ।
 
१. ज्ञाताधर्मकथा, १११८१८ : अप्पेगइयाणं आडोलियाओ अवहरइ, अप्पेगइ-
याणं तिंदुसए अवहरइ । टीका पत्र २४४ : आडोलियाओ –रुद्धाः ।
२. निशीयचूर्ण २, पृष्ठ ६३ :
अदेसिको वा अडविपहेण गच्छति, तत्थ वि तरच्छ-वग्घ-अत्यभिल्लादिभयं ।
 
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