देशीशब्दकोश /432
This page has not been fully proofread.
( निचू १ पृ १५ ) ।
बग्गेज्ज – प्रचुर (दे ७ ३८) ।
बग्गोअ – नकुल, न्यौला ( दे ७
वग्गोरमय - रूक्ष, रूखा ( दे ७ ५२ ) ।
बग्घरणसाला --तोसलि देश में प्रसिद्ध विवाह मंडप (बृभा ३४४६ ) -
'व्याघरणशाला नाम तोसलिविषये ग्राममध्ये शाला क्रियते,
तत्राग्निकुण्डं स्वयंवरहे
बहवरचेटका: एका च स्वयंवरा चेटिका प्रवेश्यन्ते इत्यर्थः ।
यस्तेषां मध्ये तस्यै प्रतिभाति तमसौ वृणीते, एषा व्याधरण-
शाला' ( टी पृ ९६३) ।
ब
वग्घाअ – १ साहाय्य, मदद । २ विकसित, खिला हुआ (दे ७।८६) ।
ब
वग्घाडिया – १ उपहास के लिए की जाने वाली विशेष ध्वनि
(ज्ञा १
प्रकार बोलना जिससे सब हंसने लग जायें (बुभा ६३२४ ) ।
बग्घाडी- उपहास के लिए की जाती एक प्रकार की आवाज- अप्पे गइया
वग्घाडी
—
वग्धारित - प्रलंबित ( जीव ३।३९७ ) ।
वग्घारिय-प्रलम्बित-वग्धारिय-पाणी एगपोग्गल निविट्ठदिट्ठी'
( भ ३
बच्चाई - क्षुद्र जंतु- विशेष - भिंगारी अरका व त्ति वचाई इंदगोविगी
( अंवि पृ ६९ ) ।
३६३
वच्च -१ घर के चारों ओर की भूमी, - 'गिहस्स समंततो वच्चं भण्णति'
(निचू २ पृ २२४) । २ मृतक के दग्ध-स्थान के चारों ओर की
भूमि । ३ श्मशान के चारों ओर की भूमि-'मडयपेरंतं वच्चं भण्णति ।
सव्वं वा सीताणं सीताणस्स वा पेरंतं वच्चं भण्णति'
(निचू २ पृ २२५ ) । ४ कूड़ा-करकट का स्थान (आचूला १०।२६)
ब
वच्चक–दर्भ जैसा तृण (बृभा ३६७५) ।
ब
वच्चग - १ तृणरूप वाद्य-विशेष (जीव ३१५८८) २ तृण- विशेष - वच्चगो
द
(रजोहरण )
वच्चयचिप्प- वल्वज घास को कूटकर बनाया हुआ
(बुभा ३६७४) ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org