देशीशब्दकोश /424
This page has not been fully proofread.
देशी शब्दकोश
लवइत - अंकुरित ( आवचू १ पृ ४७७) ।
लवइय – पल्लवित ( भ ११५० ) ।
लवली - लता - विशेष ( कुपृ १६७ ) ।
लसइ ~ कंदर्प, काम ( दे ७११८ ) ।
लसक- तरु क्षीर, पेड़ का दूध ( दे ७११८ ) ।
लसिया – पीब, रसी (अंवि पृ १७७ ) ।
लसुअ – तेल ( दे ७११८)।
लहुअवड - न्यग्रोध, बरगद का वृक्ष ( दे ७।२०) ।
लहुइय- -तोला हुआ (पा ५३१) ।
लाइम - १ लाजा के योग्य, खोई के योग्य । २ रोपणयोग्य, बोने लायक
(आचूला ४।३३ ) ।
लाइय – १ भूमी को गोबर आदि से लीपना (प्रज्ञा २२४१) । २ गृहीत
(बृटी पृ १०७; दे ७१२७) । ३ आभूषण । ४ चमधं, आधी चमड़ी
(दे ७१२७) । घुष्ट (से २।२६ ) ॥
लाइल्ल - वृषभ ( दे ८।१६) ।
लाडल्लोइय-गोमय आदि से भूमि का लेपन और खड़ी आदि से भींत
आदि का पोतना (दश्रु ८१६२ ) ।
लाउल्लोपिक - लिपाई-पुताई ( अंवि पृ १८३ ) ।
-
३५६
लाउल्लोयिक – लिपाई-पुताई ( अंवि पृ २१०) ।
-
—
लागतरण – भूने हुए चावलों से बनाया गया पेय-विशेष (जीभा ६०५ )
लाजिका – वेश्या (अंवि पृ ६८ ) ।
लाढ
--
• १ आत्मनिग्रही मुनि- 'लाढे त्ति साधुणो अक्खा' (निचू ४ पृ १२५ )
२ निर्दोष आहार से संयम - यात्रा का निर्वाह करने वाला मुनि ।
३ प्रशस्य - 'लाढयति प्रासुकेषणीयाहारेण साधुगुणैर्वा आत्मानं यापय
तीति लाढ:, प्रंशसाभिधायि वा देशीपदमेतत् ( उशाटीप १०७) ।
४ प्रधान ( उशाटी प ४१४) । ५ एक जैन आचार्य ।
लाढय -- साधु-
गुणों से जीवन यापन करने वाला (उचू पृ ६६) ।
लाणी -पुष्प- विशेष ( अंवि पृ १०४) ।
लातुल्लोइय– गोबर से भूमी का लेपन करना तथा खड़ी आदि से भींत को
पोतना ( आवचू १ पृ २२६ ) ।
लाम- सुन्दर ( जंबू ३।१७८ ) ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
लवइत - अंकुरित ( आवचू १ पृ ४७७) ।
लवइय – पल्लवित ( भ ११५० ) ।
लवली - लता - विशेष ( कुपृ १६७ ) ।
लसइ ~ कंदर्प, काम ( दे ७११८ ) ।
लसक- तरु क्षीर, पेड़ का दूध ( दे ७११८ ) ।
लसिया – पीब, रसी (अंवि पृ १७७ ) ।
लसुअ – तेल ( दे ७११८)।
लहुअवड - न्यग्रोध, बरगद का वृक्ष ( दे ७।२०) ।
लहुइय- -तोला हुआ (पा ५३१) ।
लाइम - १ लाजा के योग्य, खोई के योग्य । २ रोपणयोग्य, बोने लायक
(आचूला ४।३३ ) ।
लाइय – १ भूमी को गोबर आदि से लीपना (प्रज्ञा २२४१) । २ गृहीत
(बृटी पृ १०७; दे ७१२७) । ३ आभूषण । ४ चमधं, आधी चमड़ी
(दे ७१२७) । घुष्ट (से २।२६ ) ॥
लाइल्ल - वृषभ ( दे ८।१६) ।
लाडल्लोइय-गोमय आदि से भूमि का लेपन और खड़ी आदि से भींत
आदि का पोतना (दश्रु ८१६२ ) ।
लाउल्लोपिक - लिपाई-पुताई ( अंवि पृ १८३ ) ।
-
३५६
लाउल्लोयिक – लिपाई-पुताई ( अंवि पृ २१०) ।
-
—
लागतरण – भूने हुए चावलों से बनाया गया पेय-विशेष (जीभा ६०५ )
लाजिका – वेश्या (अंवि पृ ६८ ) ।
लाढ
--
• १ आत्मनिग्रही मुनि- 'लाढे त्ति साधुणो अक्खा' (निचू ४ पृ १२५ )
२ निर्दोष आहार से संयम - यात्रा का निर्वाह करने वाला मुनि ।
३ प्रशस्य - 'लाढयति प्रासुकेषणीयाहारेण साधुगुणैर्वा आत्मानं यापय
तीति लाढ:, प्रंशसाभिधायि वा देशीपदमेतत् ( उशाटीप १०७) ।
४ प्रधान ( उशाटी प ४१४) । ५ एक जैन आचार्य ।
लाढय -- साधु-
गुणों से जीवन यापन करने वाला (उचू पृ ६६) ।
लाणी -पुष्प- विशेष ( अंवि पृ १०४) ।
लातुल्लोइय– गोबर से भूमी का लेपन करना तथा खड़ी आदि से भींत को
पोतना ( आवचू १ पृ २२६ ) ।
लाम- सुन्दर ( जंबू ३।१७८ ) ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org