देशीशब्दकोश /418
This page has not been fully proofread.
देशी शब्दकोश
रिट्ठ – १ कौआ ( दे ७७६ ) । २ दैत्य - विशेष ( से १।३) ।
रिणकंठ – एक जनपद, जहां की भूमि वर्षाकाल में पानी से भर जाती है
और शेष समय में उसमें दरारें पड़ जाती हैं (निचू २ पृ १५० ) ।
रित्तूडिअ— शाटित, झडवाया हुआ (दे ७१८) ।
रिद्ध– पका हुआ ( दे ७।६) ।
रिद्धि - राशि, समूह (दे ७७६) ।
रिप्प - पृष्ठ, पीठ ( दे ७१५) ।
रिमिण – रोदनशील ( दे ७१७) ।
रिरिअ - लीन, आसक्त ( दे ७१७) ।
रीढ–अवगणना, अनादर ( दे ७१८ ) ।
रीढा--
-- यदृच्छा, इच्छा के
अनुसार (बृभा २१६२) ।
७१८ ) ।
रुअरुइआ— उत्कण्ठा ( दे
रुचण - रूई से कपास को अलग करने की क्रिया (पिनि ५८८)।
रुचणी- घरट्टी, दलने का प्रस्तर - यंत्र ( दे ७१८) ।
रुचिय–पिष्ट, पीसा हुआ ( बृटी पृ ३९२ )।
रु जग – वृक्ष - कुहा महीरुहा वच्छा रोवगा संजगाई य' (दनि १ ) ।
रुटणया -अवज्ञा (पिनि २१० ) ।
रुटणा- --अवज्ञा-'
- बहूहि खिज्जणियाहि य रुंटणाहि य उवलंभणाहि य'
( ज्ञा १।१८।१०) ।
रुटणिया - १ अवज्ञा, अनादर । २ रोदन क्रिया (ज्ञा १ / ९६ ६७) ।
इंढ - आक्षिक, जूआरी ( दे ७१८ ) ।
रुढिअ - सफल ( दे ७१८) ।
रुंद – १ दीर्घ - रुंदाई पलोएमाणे' (भ १५७१२० ) । २ विस्तीर्ण
( औप ४६ ) । ३ महान्, विशाल - 'संघसमुद्दस्स रुंदस्स'
( नंदी गा ११ ) । रुंद्र - विशाल ( कन्नड़ ) । ४ विपुल । ५ वाचाल
(दे ७।१४) ।
रुक्क – बैल की भांति शब्द करना - रुक्कं ति सद्दकरणं' (अनुद्राचू पृ १३ ) ।
रुगण - कृष्ण वस्तु विशेष - अंजणं कज्जलं व त्ति रुगणं' ( अंवि पृ ६२ ) ।
रुण्णमाला – कंठ या वक्षस्थल का आभूषण ( कुपृ १९४ ) ।
रुप्फय – सर्प आदि के काटने पर किया जाने वाला उपचार विशेष-
Jain Education International
३४६
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
रिट्ठ – १ कौआ ( दे ७७६ ) । २ दैत्य - विशेष ( से १।३) ।
रिणकंठ – एक जनपद, जहां की भूमि वर्षाकाल में पानी से भर जाती है
और शेष समय में उसमें दरारें पड़ जाती हैं (निचू २ पृ १५० ) ।
रित्तूडिअ— शाटित, झडवाया हुआ (दे ७१८) ।
रिद्ध– पका हुआ ( दे ७।६) ।
रिद्धि - राशि, समूह (दे ७७६) ।
रिप्प - पृष्ठ, पीठ ( दे ७१५) ।
रिमिण – रोदनशील ( दे ७१७) ।
रिरिअ - लीन, आसक्त ( दे ७१७) ।
रीढ–अवगणना, अनादर ( दे ७१८ ) ।
रीढा--
-- यदृच्छा, इच्छा के
अनुसार (बृभा २१६२) ।
७१८ ) ।
रुअरुइआ— उत्कण्ठा ( दे
रुचण - रूई से कपास को अलग करने की क्रिया (पिनि ५८८)।
रुचणी- घरट्टी, दलने का प्रस्तर - यंत्र ( दे ७१८) ।
रुचिय–पिष्ट, पीसा हुआ ( बृटी पृ ३९२ )।
रु जग – वृक्ष - कुहा महीरुहा वच्छा रोवगा संजगाई य' (दनि १ ) ।
रुटणया -अवज्ञा (पिनि २१० ) ।
रुटणा- --अवज्ञा-'
- बहूहि खिज्जणियाहि य रुंटणाहि य उवलंभणाहि य'
( ज्ञा १।१८।१०) ।
रुटणिया - १ अवज्ञा, अनादर । २ रोदन क्रिया (ज्ञा १ / ९६ ६७) ।
इंढ - आक्षिक, जूआरी ( दे ७१८ ) ।
रुढिअ - सफल ( दे ७१८) ।
रुंद – १ दीर्घ - रुंदाई पलोएमाणे' (भ १५७१२० ) । २ विस्तीर्ण
( औप ४६ ) । ३ महान्, विशाल - 'संघसमुद्दस्स रुंदस्स'
( नंदी गा ११ ) । रुंद्र - विशाल ( कन्नड़ ) । ४ विपुल । ५ वाचाल
(दे ७।१४) ।
रुक्क – बैल की भांति शब्द करना - रुक्कं ति सद्दकरणं' (अनुद्राचू पृ १३ ) ।
रुगण - कृष्ण वस्तु विशेष - अंजणं कज्जलं व त्ति रुगणं' ( अंवि पृ ६२ ) ।
रुण्णमाला – कंठ या वक्षस्थल का आभूषण ( कुपृ १९४ ) ।
रुप्फय – सर्प आदि के काटने पर किया जाने वाला उपचार विशेष-
Jain Education International
३४६
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org