2023-04-16 08:50:12 by श्री अयनः चट्टोपाध्यायः

This page has been fully proofread once and needs a second look.

देशी शब्दकोश
 
मुहिआ -- वैसे ही करना, व्यर्थ ही करना ( दे ६१३४ वृ ) - जिणसासणं
पि कहमवि लघुद्धुं हारेसि मुहियाए' ।

मुहुमुह -- दुर्जन, खल ( पा १२३ ) ।

मूअल -- मूक ( दे ६।१३७) ।
) ।
मूअल्ल -- मूक ( दे ६।१३७) ।
 
--
 
-
 
) ।
मूअल्लइअ - मूक (- मूक ( से ५४१) ।
 
) ।
मूइंग -- चींटी- मु - 'मूइंगमाति खइते' ( निभा २१८६) ।
) ।
मूइंगलिया -- पिपीलिका, चींटी ( पंव २३८) ।
) ।
मू
इंगा -- चींटी ( ओनि ५६० ) ।

मूइंगुलिया -- चींटी ( सं ८५ )

मूइयंग -- चींटी
मूएल्लि – मूक ( कुपृ ८२) ।
 
- 'जीवा मुइयंगमूसादी' ( जीभा १२६३) ।
 
) ।
मूएल्लि -- मूक ( कु पृ ८२ ) ।
मूड -- अन् का एक दीघं परिमाण-चउत्थीए भाउयखेत्तेसु आरोविऊण
वुड्ढि नीया, जाया वरिसपणगेण मूडसहस्सा' ( व्यभा ४४ टी प ३५) ४
) ।
मूढक -- शरासन, आसनविशेष ( ज्ञाटी प ४७) ।
 
) ।
मूढत्थ -- धान्य- विशेष
-
- 'मासा मूढत्थ चणका कुलत्थ त्ति सण त्ति वा '
' ( अंवि पृ ६६
 
) ।
मूढिगाह -- धान्य आदि भरने के लिए जमीन को खोदकर, ऊपर से संकरा
और नीचे से विस्तीर्ण बनाया गया भूगृह जो अग्नि से संस्कारित
किया जाता है। इसमें एकत्रित धान चिरकाल तक सुरक्षित
रहता है - 'मूढिगाहा भूमी एगा खणितु भूमीघरगं उवरिरिं संकडं हेट्ठा
विच्छिन्नं अग्गिणा दहित्ता कज्जति, ताहिं तु चिरंपि गोधूमादि
वत्थुं अच्छति' (आचू पृ ३३६ ) ।
 
मूर्ति
९ ) ।
मूतिं
गलिया -- चींटी, पिपीलिका ( जीभा २१ ) ।

मूयंगा -- चींटी ( आचू पृ ३२८)।
 
सू
) ।
मू
यग -- मेवाड़ देश में होने वाला तृण- विशेष - 'मेदपाटप्रसिद्धस्तृणविशेषः'
( प्रटी प १२८ ) ।
 

मूरग -- भञ्जक, तोड़ने वाला ( प्र ४५ ) ।
मूरण –
।४ ) ।
मूरण --
तोडने वाला -'जय महामोहमूरण' ( कु पृ २४२) ।

मूरय -- भञ्जक, तोड़ने वाला-पंचविहो ववहारो, दुग्गइभवमूरएहिं पण्णत्तो
(
( जीभा ८ ) ।
 

मूलवेलि -- घर के छप्पर का आधारभूत स्तम्भ - पट्टीठीवंसो दो धारणउ
चत्तारि मूलवेलीओ' ( प्रसा ८७१ ) ।
 
Jain Education International
 
For Private & Personal Use Only
 
www.jainelibrary.org