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निहुयं ति आर्षत्वाद् नि, नुतम् ।
 
प्राकृते पुष्परजः शब्दस्य तिगिछ इति निपातः देशीशब्दो वा ।
तुंडियं थिग्गलं देसीभासाए सामयिगी वा एस पडिभासा ।
दिगिछ त्ति देशीवचनेन बुभुक्षोच्यते ।
दुवग्ग त्ति देशीवचनत्वाद् द्वावपि ।
अमाघातो रूढिशब्दत्वाद् अमारिरित्यर्थः ।
 
मरहट्ठविसयभासाए वा इत्थी माउग्गामो भण्णति ।
सहणं ति देसीभासा सहेत्यर्थः ।
 
वाउप्पइय त्ति वातोत्पतिका रूढ्यावसेया ।
 
वालग्गपोइयातो त्ति देशीपदं वलभीवाचकम् अन्ये त्वाकाशतडागमध्य-
स्थितं क्षुल्लक प्रासादमेव वालग्गपोइया य त्ति देशीपदाभिधेयमाहुः ।
संघाडिय त्ति देशीपदमव्युत्पन्नमेव मित्राभिधायि ।
वियडिशब्देन लोके अटवी उच्यते ।
 
विसालिसेहि ति मागधदेशीयभाषया विसदृशैः ।
संगेल्ली समुदायः देश्योऽयं शब्दः ।
सासेरा देशीपदत्वाद् यंत्रमयी नर्तकी ।
साहिशब्दो राजमार्गे देशी ।
 
सुत्तं मदिराखोल: देशविशेषप्रसिद्धो वा कश्चिद् द्रव्यः ।
सुरूची रूढिगम्या आभरणविशेषः इति केचित् ।
 
हुरत्या नाम देसीभासातो बहिद्धा ।
 
होले त्ति निठुरमामंतणं देसीए भविलवचनमिव ।
होला इति देशोभाषातः समवया आमन्त्र्यते ।
 
प्रारम्भ में हमने प्राय: उन्हीं शब्दों का संकलन किया जहां देशी आदि
का उल्लेख था, किन्तु जब आचार्य हेमचंद्र की देशीनाममाला का पारायण
किया तब अनेक दृष्टियां स्पष्ट हुईं । इसलिए सभी आगम एवं व्याख्याग्रंथों
का पुनः अवलोकन किया। इससे हजारों शब्द इस कोश में और जुड़ गए ।
 
यहां कुछ ऐसे उदाहरण प्रस्तुत हैं जहां हमने देशीनाममाला को आदर्श
मानकर शब्दों का चयन किया है—
 
यद्यपि कोश में नञ् समास वाले शब्दों का संग्रहण प्राय: नहीं किया
जाता, किन्तु देशीनाममाला में कुछ ऐसे शब्द भी मिलते हैं। जैसे-
अणच्छिआर (अच्छिन्न ), अभिखिय ( अनिंदनीय) । इस आधार पर हमने भी
ऐसे शब्दों का संकलन किया है । जैसे— अतितिण, अचोक्ख, अच्छिक्क,
अजढर आदि ।
 
आचार्य हेमचंद्र ने ऐसे अनेक शब्दों को देशी माना है जिनकी संस्कृत
छाया संभव है, किन्तु संस्कृत में वे प्रसिद्ध नहीं हैं । जैसे--
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