देशीशब्दकोश /388
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भिब्मियमच्छ -- मत्स्य की जाति-विशेष ( जीवटी प ३६ ) ।
भिब्भिसमाण -- अत्यंत दीप्यमान ( ज्ञा १।१।८९ ) ।
भिमोर -- हिम का मध्य भाग ( ? ) ( प्रा २।१७४ ) ।
भिरिंड -- कुए की मेंढ- 'जुण्णकूवभिरिंडे तणपूलितं गहाय उस्सिंचति' ( आवचू १ पृ २१० ) ।
भिरुइय -- ठगा जाना, वंचित- कयाइ कहं पि न भिरुइओ होमि, ता णिहुयं होऊण पेच्छामि' ( कु पृ २५१ ) ।
भिलंग -- १ धान्य विशेष, मसूर ( दश्रु ६।१८ ) । २म्रक्षण ( सूचू १ पृ ११६ ) ।
भिलंगाय -- प्रक्षणक, चुपडना, अभ्यंगन - 'तेल्लं मुहे भिलंगाय - मुहमक्खणयं तेल्लं आणेहि' ( सूचू १ पृ ११६ ) ।
भिलिंग -- १ म्रक्षण - तेल्लं मुहे भिलिंगाय' ( सू १।४।३९ ) । २ धान्य-विशेष, मसूर ( आवचू २ पृ १२० ) ।
भिलिंगाय -- म्रक्षणक, चुपड़ना, 'भिलिंगाय त्ति देसीभासाए मक्खण मेव' ( सूचू १ पृ ११६ ) ।
भिलिंजाय -- म्रक्षण, अभ्यंग ( सू १।४।३९ पा ) ।
भिलुंग -- हिंसक पक्षी वणसंडंसि बहवे भिलुंगा नाम पावसउणा परिवसंति ( राज ७०३ ) ।
भिलुगा -- फटी हुई जमीन- भिलुगत्ति स्फुटितकृष्णभूराजि:' ( आचूला १।५३ टी प ३३७ ) ।
भिलुया -- फटी हुई जमीन, जमीन की दरार ( आचूला १०।१७ ) ।
भिलुहा -- भूमी की दरार - कण्हभूमिदली मिलुहा' ( दअचू पृ १५६ ) ।
भिल्लिरी -- मछली पकड़ने का एक प्रकार का जाल ( विपा १।८।१९ ) ।
भिल्लुगा -- भूमी की रेखा ( आचूला १।५३ पा ) ।
भिसंत -- अनर्थ ( दे ६।१०५ ) ।
भिसमाण -- दीप्यमान ( ज्ञा १।१।८९ ) ।
भिसरा -- जाल-विशेष ( विपा १।८।१९ ) ।
भिसिगा -- आसन-विशेष ( सू २।२।२५ ) ।
भिसिया -- बृसी, ऋषि का आसन ( भ २।३१; दे ६।१०५ ) ।
भिसोल -- नृत्य-विशेष ( स्थाटी प २७२ ) ।
भोभीराहि -- सर्प की जाति-विशेष - 'भीराहि गोणसो व त्ति अजो अजगरो त्ति वा' ( अंवि पृ ६३ ) ।
भिब्भिसमाण -- अत्यंत दीप्यमान ( ज्ञा १।१।८९ ) ।
भिमोर -- हिम का मध्य भाग ( ? ) ( प्रा २।१७४ ) ।
भिरिंड -- कुए की मेंढ- 'जुण्णकूवभिरिंडे तणपूलितं गहाय उस्सिंचति' ( आवचू १ पृ २१० ) ।
भिरुइय -- ठगा जाना, वंचित- कयाइ कहं पि न भिरुइओ होमि, ता णिहुयं होऊण पेच्छामि' ( कु पृ २५१ ) ।
भिलंग -- १ धान्य विशेष, मसूर ( दश्रु ६।१८ ) । २म्रक्षण ( सूचू १ पृ ११६ ) ।
भिलंगाय -- प्रक्षणक, चुपडना, अभ्यंगन - 'तेल्लं मुहे भिलंगाय - मुहमक्खणयं तेल्लं आणेहि' ( सूचू १ पृ ११६ ) ।
भिलिंग -- १ म्रक्षण - तेल्लं मुहे भिलिंगाय' ( सू १।४।३९ ) । २ धान्य-विशेष, मसूर ( आवचू २ पृ १२० ) ।
भिलिंगाय -- म्रक्षणक, चुपड़ना, 'भिलिंगाय त्ति देसीभासाए मक्खण मेव' ( सूचू १ पृ ११६ ) ।
भिलिंजाय -- म्रक्षण, अभ्यंग ( सू १।४।३९ पा ) ।
भिलुंग -- हिंसक पक्षी वणसंडंसि बहवे भिलुंगा नाम पावसउणा परिवसंति ( राज ७०३ ) ।
भिलुगा -- फटी हुई जमीन- भिलुगत्ति स्फुटितकृष्णभूराजि:' ( आचूला १।५३ टी प ३३७ ) ।
भिलुया -- फटी हुई जमीन, जमीन की दरार ( आचूला १०।१७ ) ।
भिलुहा -- भूमी की दरार - कण्हभूमिदली मिलुहा' ( दअचू पृ १५६ ) ।
भिल्लिरी -- मछली पकड़ने का एक प्रकार का जाल ( विपा १।८।१९ ) ।
भिल्लुगा -- भूमी की रेखा ( आचूला १।५३ पा ) ।
भिसंत -- अनर्थ ( दे ६।१०५ ) ।
भिसमाण -- दीप्यमान ( ज्ञा १।१।८९ ) ।
भिसरा -- जाल-विशेष ( विपा १।८।१९ ) ।
भिसिगा -- आसन-विशेष ( सू २।२।२५ ) ।
भिसिया -- बृसी, ऋषि का आसन ( भ २।३१; दे ६।१०५ ) ।
भिसोल -- नृत्य-विशेष ( स्थाटी प २७२ ) ।