देशीशब्दकोश /372
This page has not been fully proofread.
देशी शब्दकोश
३०३:
फलिय- नाना प्रकार के व्यंजन और भक्ष्यपदार्थों द्वारा बनाया हुआ खाद्य-
विशेष- 'फलियं पहेणगाई वंजणभक्वेहि वा विरइयं तु'
(व्यभा ९ टीप १६ ) ।
फलिह – १ आकाश - अगमे इ वा फलिहे इ वा अणंते इ वा '
(भ २०।१६) । २ कपास का टेंटा (अनुद्वामटी प ३१ ) ।
३ पाष्णि, एडी (उशाटी प १९३) ।
फलिही – कपास का टेंटा (अनुद्वामटी प ३१) ।
फसल – १ सारभूत । २ स्थासक, हस्तबिंब ( दे ६१८७) । ३ चितकबरा
(पा १६७ ) ।
फसलाणिअ— विभूषित ( दे६।८३ ) ।
फसलिअ - विभूषित, जिसने विभूषा की हो वह ( दे ६ ८३ ) ।
फसुल - मुक्त ( दे ६८२) ।
-
फालहिय - शाक आदि की बाडी का स्वामी ( व्यभा ५ टीप ७ ) ।
फालि – १ फली, छीमी (आचू पृ २०० ) । २ शाखा - सिबलिफालिव्व
अग्गिणा दड्ढो' ( सं ८४) । ३ फांक, टुकड़ा
फालिय – देशविशेष में होने वाला वस्त्र ( आचूला ५।१४) ।
फिक्कि - हर्ष ( दे ६।८३) ।
फिज – टखना- कुल्लेसु सुउप्पत्ती ऊरूहि बंधुणो अणिठं तु । पासेसु वल्लह्त्तं
वाहणलाभो फिजे भणिओ ॥ ( उसुटीप १३०) ।
फिडित – १ इधर-उधर बिखरे हुए - भत्तट्ठा अण्णण्णतो फिडिताणं'
( नंदीचू पृ ६ ) । २ अतिक्रांत - पडिलेहणिया काले फिडिए
कल्लाणगं तु पच्छित्तं' (ओभा १७४) ।
फिड्डु
फिडिय– अपगत, च्युत (ओनि ११२ ) ।
- वामन (दे ६३८४) ।
-
-
फिप्प – कृत्रिम ( दे ६३८३ ) ।
फिप्फिस–फेफड़ा ( प्र १॥११ ) ।
फिरडि – फुर्-फुर् कर उड़ जाना (बुटी पृ ६१० ) ।
फिरिडि – फुर्- फुर् कर उड़ जाना- फिरिडित्ति णिग्गया सुघरा',
(आवचू १ पृ ३४५) ।
फिलिय - भ्रष्ट ( से ८२६८ ) ।
i
फिल्लसिय – फिसला हुआ-सा तत्थ वच्चंती फिल्लसिया' (बूटी पृ ९२६)
फिल्लुसण- फिसलन (बूचू प १४१) ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
३०३:
फलिय- नाना प्रकार के व्यंजन और भक्ष्यपदार्थों द्वारा बनाया हुआ खाद्य-
विशेष- 'फलियं पहेणगाई वंजणभक्वेहि वा विरइयं तु'
(व्यभा ९ टीप १६ ) ।
फलिह – १ आकाश - अगमे इ वा फलिहे इ वा अणंते इ वा '
(भ २०।१६) । २ कपास का टेंटा (अनुद्वामटी प ३१ ) ।
३ पाष्णि, एडी (उशाटी प १९३) ।
फलिही – कपास का टेंटा (अनुद्वामटी प ३१) ।
फसल – १ सारभूत । २ स्थासक, हस्तबिंब ( दे ६१८७) । ३ चितकबरा
(पा १६७ ) ।
फसलाणिअ— विभूषित ( दे६।८३ ) ।
फसलिअ - विभूषित, जिसने विभूषा की हो वह ( दे ६ ८३ ) ।
फसुल - मुक्त ( दे ६८२) ।
-
फालहिय - शाक आदि की बाडी का स्वामी ( व्यभा ५ टीप ७ ) ।
फालि – १ फली, छीमी (आचू पृ २०० ) । २ शाखा - सिबलिफालिव्व
अग्गिणा दड्ढो' ( सं ८४) । ३ फांक, टुकड़ा
फालिय – देशविशेष में होने वाला वस्त्र ( आचूला ५।१४) ।
फिक्कि - हर्ष ( दे ६।८३) ।
फिज – टखना- कुल्लेसु सुउप्पत्ती ऊरूहि बंधुणो अणिठं तु । पासेसु वल्लह्त्तं
वाहणलाभो फिजे भणिओ ॥ ( उसुटीप १३०) ।
फिडित – १ इधर-उधर बिखरे हुए - भत्तट्ठा अण्णण्णतो फिडिताणं'
( नंदीचू पृ ६ ) । २ अतिक्रांत - पडिलेहणिया काले फिडिए
कल्लाणगं तु पच्छित्तं' (ओभा १७४) ।
फिड्डु
फिडिय– अपगत, च्युत (ओनि ११२ ) ।
- वामन (दे ६३८४) ।
-
-
फिप्प – कृत्रिम ( दे ६३८३ ) ।
फिप्फिस–फेफड़ा ( प्र १॥११ ) ।
फिरडि – फुर्-फुर् कर उड़ जाना (बुटी पृ ६१० ) ।
फिरिडि – फुर्- फुर् कर उड़ जाना- फिरिडित्ति णिग्गया सुघरा',
(आवचू १ पृ ३४५) ।
फिलिय - भ्रष्ट ( से ८२६८ ) ।
i
फिल्लसिय – फिसला हुआ-सा तत्थ वच्चंती फिल्लसिया' (बूटी पृ ९२६)
फिल्लुसण- फिसलन (बूचू प १४१) ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org