2023-04-06 17:30:31 by श्री अयनः चट्टोपाध्यायः

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पूरी -- १ हाथी की पीठ पर बिछाया जाने वाला आस्तरण - 'पूरी पल्हवी हस्त्यास्तरणम्' ( जीविप पृ ५१ ) । २ तन्तुवाय का एक उपकरण ( दे ६।५६ ) ।
पूरोट्टी -- अवकर, कूड़ा-करकट ( दे ६।५७ ) ।
पूलिय -- घास का पूला - 'जइ अग्गिम्मि वि पबले खडपूलिय खिप्पमेव झामेइ' ( म २९२ ) ।
पूलिया -- खाद्य पदार्थ-विशेष ( निचू १ पृ २९ ) ।
पूस -- १ फली-विशेष ( भ २२।६ ) । २ सातवाहन राजा । ३ शुक, तोता ( दे ६।८० ) ।
पूसअ -- तोता ( पा २९१ ) ।
पूसमाणय -- मंगल पाठक ( भ ९।२०८ ) ।
पेंड -- १ टुकड़ा, खंड । २ वलय ( दे ६।८१ ) ।
पेंडअ -- १ तरुण ( दे ६।५३ ) । २ नपुंसक - पेंडओ षण्ढ इत्यन्ये' ( वृ ) ।
पेंडधव -- खड्ग, तलवार ( दे ६।५९ ) ।
पेंडपाली -- स्थान-विशेष ( अंवि पृ २३३ ) ।
पेंडबाल -- पिंडीकृत, एकत्रित ( दे ६।५४ ) ।
पेंडल -- रस ( दे ६।५८ ) ।
पेंडलिअ -- पिंडीकृत, एकत्रित ( दे ६।५४ ) ।
पेंडार -- १ गो-पाल, गायों को पालने वाला ( दे ६।५८ ) । २ महिषी-पाल, महिषियों को पालने वाला - 'पेंडारो गोपः । पेंडारो महिषीपाल इति देवराजः' ( वृ ) ।
पेंडिका -- खाद्य-विशेष ( अंवि पृ १८२ ) ।
पेंडी -- मंजरी ( अंवि पृ २३९ ) ।
पेंडोली -- क्रीड़ा ( दे ६।५९ ) ।
पेंढा -- कलुष-मदिरा, पंकसुरा ( दे ६।५० ) ।
पेचुका -- कण्ठ का आभूषण-विशेष ( अंवि पृ १६३ ) ।
पेच्छअ -- दृष्टमात्र का अभिलाषी, जो देखे उसी को चाहने वाला ( दे ६।५८ ) ।
पेच्छग -- प्रत्युत् - 'कि कज्जं तुमं न रुट्ठो, पेच्छगं मम पूएसि, पाएसु य पडसि' ( निचू ४ पृ ३१२ ) ।
पेज्जल -- प्रमाण ( दे ६।५७ ) ।