देशीशब्दकोश /351
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देशी शब्दकोश
२८२
पाण- १ भाजन-
- विशेष - पाणशब्देन भाजनविशेष उच्यते' ( अनु ३।३८ टी) ।
२ चाण्डाल - पाणा नाम ये ग्रामस्य नगरस्य च बहिराकाशे वसन्ति
तेषां गृहाणामभावात्' (व्यभा ४ । ३ टीप २१; दे ६।३८ ) । ३ वृक्ष-
विशेष (अंवि पृ ६३ ) ॥
पाणंधि—आने-जाने का मार्ग - पाणंधीति देशी पदमेतत् वर्तिनीवाचकं'
(व्या ४२ टीप८ ) ।
पाणद्धि– रथ्या, गली ( दे ६ । ३६ ) ।
पाणाअअ – श्वपच, चांडाल (दे ६।३८)।
पाणामा– १ सबको प्रणाम करने की पद्धति से अनुप्राणित प्रव्रज्या का एक
प्रकार । ( भ ३ । ३४) । २ वैनयिकवादियों का एक भेद
(सूचू १ पृ २०७) ।
-
पाणाली – दोनों हाथों का प्रहार (दे ६।४०}।
पाणी – वल्ली विशेष ( प्रज्ञा ११४०१४) ।
पाण्णयिक— द्वीन्द्रिय जंतु विशेष ( अंवि पृ २३७) ।
पातंक - मुद्रा विशेष, सिक्का (नंदीटि पृ १४२ ) ।
पातिक — त्रीन्द्रिय जंतु विशेष (अंवि पृ २६७) ।
पातिज्ज – उत्सव विशेष ( ? ) ( अंवि पृ १८ ) ।
पादकुहडि - पैरों को हिलाना, आगे-पीछे करना, पैरों से कुचेष्टा करना-
'हत्थणट्ट-पादकुहडि- सरीरमोडणाति परिहरंतो' (दअचू पृ १९६ ) ।
पादखडयग – पैर का आभूषण - विशेष, बिछुआ (अंवि पृ ६५) ।
पापढक – पैरों का आभूषण- विशेष ( अंवि पृ ६५ ) ।
- सर्प की एक जाति (अंवि पृ ६३ ) ।
पामद्दा – पैरों से धान्य को मसलना ( दे ६।४०)।
पामाड - पमाड का पेड़ (पा ३७० ) ।
पापहिक
-
पामिच्च – उधार लिया हुआ - कीथं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसट्ठे'
(आ८२१ ) ।
पामिच्चय - उधार लिया हुआ (आचूला १०।११ ) ।
पामेच्छा – वनस्पति विशेष ( अंवि पृ १२) ।
पाय – १ रथ चक्र, रथ का पहिया ( दे ६।३७ ) । २ फणी, सांप ।
पायंक- विशेष प्रकार का सिक्का - 'पायंकाणं नाणगविसेसरूवाणं'
(आवमटी प ५३०) ।
पायड - आंगन ( दे ६।४०) ।
-
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२८२
पाण- १ भाजन-
- विशेष - पाणशब्देन भाजनविशेष उच्यते' ( अनु ३।३८ टी) ।
२ चाण्डाल - पाणा नाम ये ग्रामस्य नगरस्य च बहिराकाशे वसन्ति
तेषां गृहाणामभावात्' (व्यभा ४ । ३ टीप २१; दे ६।३८ ) । ३ वृक्ष-
विशेष (अंवि पृ ६३ ) ॥
पाणंधि—आने-जाने का मार्ग - पाणंधीति देशी पदमेतत् वर्तिनीवाचकं'
(व्या ४२ टीप८ ) ।
पाणद्धि– रथ्या, गली ( दे ६ । ३६ ) ।
पाणाअअ – श्वपच, चांडाल (दे ६।३८)।
पाणामा– १ सबको प्रणाम करने की पद्धति से अनुप्राणित प्रव्रज्या का एक
प्रकार । ( भ ३ । ३४) । २ वैनयिकवादियों का एक भेद
(सूचू १ पृ २०७) ।
-
पाणाली – दोनों हाथों का प्रहार (दे ६।४०}।
पाणी – वल्ली विशेष ( प्रज्ञा ११४०१४) ।
पाण्णयिक— द्वीन्द्रिय जंतु विशेष ( अंवि पृ २३७) ।
पातंक - मुद्रा विशेष, सिक्का (नंदीटि पृ १४२ ) ।
पातिक — त्रीन्द्रिय जंतु विशेष (अंवि पृ २६७) ।
पातिज्ज – उत्सव विशेष ( ? ) ( अंवि पृ १८ ) ।
पादकुहडि - पैरों को हिलाना, आगे-पीछे करना, पैरों से कुचेष्टा करना-
'हत्थणट्ट-पादकुहडि- सरीरमोडणाति परिहरंतो' (दअचू पृ १९६ ) ।
पादखडयग – पैर का आभूषण - विशेष, बिछुआ (अंवि पृ ६५) ।
पापढक – पैरों का आभूषण- विशेष ( अंवि पृ ६५ ) ।
- सर्प की एक जाति (अंवि पृ ६३ ) ।
पामद्दा – पैरों से धान्य को मसलना ( दे ६।४०)।
पामाड - पमाड का पेड़ (पा ३७० ) ।
पापहिक
-
पामिच्च – उधार लिया हुआ - कीथं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसट्ठे'
(आ८२१ ) ।
पामिच्चय - उधार लिया हुआ (आचूला १०।११ ) ।
पामेच्छा – वनस्पति विशेष ( अंवि पृ १२) ।
पाय – १ रथ चक्र, रथ का पहिया ( दे ६।३७ ) । २ फणी, सांप ।
पायंक- विशेष प्रकार का सिक्का - 'पायंकाणं नाणगविसेसरूवाणं'
(आवमटी प ५३०) ।
पायड - आंगन ( दे ६।४०) ।
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