देशीशब्दकोश /348
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देशी शब्दकोश
पसवडक्क --विलोकन, देखना ( दे ६ । ३० ) ।
पसाइया-पत्तों की बनी हुई एक प्रकार की पगडी जिसे भील सिर पर पहनते
हैं (दे ६।२) ।
पसाणग – उपकरण विशेष ( अंवि पृ १९३ ) ।
पसिंडि - सोना, स्वर्ण (पा ८० ) ।
पसिय ~ सुपारी ( भ २२१२ पा; दे ६।६ ) ॥
पसिव्विका – थैली का एक प्रकार ( अंवि पृ १७८ ) ।
पसुत्ति – एक प्रकार का कुष्ठरोग (निचू ३ पृ ३९२ ) ।
पसुहत्त -- वृक्ष ( दे ६।२६) ।
पसूअ – कुसुम, पुष्प ( दे ६।६ ) ।
पसूइ – धान्य-
प- विशेष - सालि पसूई व गद्दर्भिया य छिन्ना'
( आवहाटी १ पृ २९०) ।
पसेवअ - ब्रह्मा (दे ६।२२ ) ।
पसेव्वक – थैला ( अंवि पृ २२१ ) ।
परिसण्ण–पसीने से गीला - तिलगो से खमगललार्ड परिसण्णं संकतो'
(दअचू पृ २५ ) ।
पहएल्ल -- अपूप, पूआ ( दे ६।१८ ) ।
पहकर – समूह- पहकरो त्ति देशीशब्दोऽयं समूहवाची' (जंबूटीप १४५) ।
पहगर - जलजंतु- विशेष
- जलचर
पहगर-परिहत्यग-मच्छपरिभुज्जमाणजल-
संचयं ' ( ८३०) ।
पहट्ट – १ दृप्त, उन्मत्त ( तंदु पृ ४५ ; दे ६॥६) । २ अचिरतर दृष्ट ।
पहण – कुल ( दे ६।५) ।
पहणि – सामने आए हुए का निरोध, रुकावट ( दे ६१५ ) ।
पहद – सदा दृष्ट, सदा देखा हुआ ( दे ६ । १० ) ।
-
पहम्म - १ देवताओं द्वारा खोदा हुआ ( दे ६ । ११ ) । २ खात जल-कुण्ड ।
३ विवर, छिद्र - मणिपहम्म' - मणिमयं विवरं यद्वा मणीनां प्रथमः
खात इति देशी' (से ६।४३) ।
पहिअ
पहयर – समूह, निकर (दे ६।१५) ।
- मथित, विलोड़ित ( दे ६ । ६ ) ।
-
पहेण - - १ विवाह के समय वधू के पीहर
-
२७६
(पितृगृह) में किया जाने वाला
भोज । २ अन्य घरों में ले जाई जाने वाली भोजन-सामग्री । ३ जो
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पसवडक्क --विलोकन, देखना ( दे ६ । ३० ) ।
पसाइया-पत्तों की बनी हुई एक प्रकार की पगडी जिसे भील सिर पर पहनते
हैं (दे ६।२) ।
पसाणग – उपकरण विशेष ( अंवि पृ १९३ ) ।
पसिंडि - सोना, स्वर्ण (पा ८० ) ।
पसिय ~ सुपारी ( भ २२१२ पा; दे ६।६ ) ॥
पसिव्विका – थैली का एक प्रकार ( अंवि पृ १७८ ) ।
पसुत्ति – एक प्रकार का कुष्ठरोग (निचू ३ पृ ३९२ ) ।
पसुहत्त -- वृक्ष ( दे ६।२६) ।
पसूअ – कुसुम, पुष्प ( दे ६।६ ) ।
पसूइ – धान्य-
प- विशेष - सालि पसूई व गद्दर्भिया य छिन्ना'
( आवहाटी १ पृ २९०) ।
पसेवअ - ब्रह्मा (दे ६।२२ ) ।
पसेव्वक – थैला ( अंवि पृ २२१ ) ।
परिसण्ण–पसीने से गीला - तिलगो से खमगललार्ड परिसण्णं संकतो'
(दअचू पृ २५ ) ।
पहएल्ल -- अपूप, पूआ ( दे ६।१८ ) ।
पहकर – समूह- पहकरो त्ति देशीशब्दोऽयं समूहवाची' (जंबूटीप १४५) ।
पहगर - जलजंतु- विशेष
- जलचर
पहगर-परिहत्यग-मच्छपरिभुज्जमाणजल-
संचयं ' ( ८३०) ।
पहट्ट – १ दृप्त, उन्मत्त ( तंदु पृ ४५ ; दे ६॥६) । २ अचिरतर दृष्ट ।
पहण – कुल ( दे ६।५) ।
पहणि – सामने आए हुए का निरोध, रुकावट ( दे ६१५ ) ।
पहद – सदा दृष्ट, सदा देखा हुआ ( दे ६ । १० ) ।
-
पहम्म - १ देवताओं द्वारा खोदा हुआ ( दे ६ । ११ ) । २ खात जल-कुण्ड ।
३ विवर, छिद्र - मणिपहम्म' - मणिमयं विवरं यद्वा मणीनां प्रथमः
खात इति देशी' (से ६।४३) ।
पहिअ
पहयर – समूह, निकर (दे ६।१५) ।
- मथित, विलोड़ित ( दे ६ । ६ ) ।
-
पहेण - - १ विवाह के समय वधू के पीहर
-
२७६
(पितृगृह) में किया जाने वाला
भोज । २ अन्य घरों में ले जाई जाने वाली भोजन-सामग्री । ३ जो
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