देशीशब्दकोश /338
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देशी शब्दकोश
पत्तउर-गुच्छ वनस्पति विशेष ( प्रज्ञा १ । ३६ ३) ।
पत्तंबेल्लि - खाद्य विशेष ( धंवि पृ ७१ ) ।
-
पत्तट्ठ- १ कुशल, बहु-शिक्षित (भ १४ । ३ ; दे ६।६८) । २ सुन्दर
( दे ६।६८) ।
पत्तण - १ बाण का अग्रभाग । २ पुंख, बाण का मूल भाग ( दे ६ ६४)
पत्तणा - १ पुंख में की जाने वाली रचना विशेष ( से ७१५२ ) । २ इषु-
फलक । ३ बाण का मूल भाग, पुंख ( से १५।७३ ) ।
पत्तपसाइआ–पत्तियों की एक तरह की पगड़ी जिसे भील लोग पहनते हैं
(दे ६।२ ) ।
पगड़ी जिसे भील लोग पहनते हैं
पत्तपिसालस-पत्तियों की एक तरह की
( दे ६।२ ) ।
पत्तरक-- आभूषण-विशेष (प्रटी प १४६) ।
पत्तल – १ तीक्ष्ण, तेज (औप ४७; दे ६ । १४ ) । २ कृश ( वृ ) ।
पत्तला – राजपत्र, अधिकार पत्र - समप्पिज्जंति सेवयाणं महापडिहारे हि
गाम - णयर खेडकब्बड पट्टणाणं पत्तलाओ त्ति' ( कुपृ १८ ) ।
पत्तवासित - बंधा हुआ (निचू ४ पृ २२१) ।
पत्तादार — श्रीन्द्रिय जन्तु विशेष ( प्रज्ञा १ । ५० )।
पत्तिसमिद्ध - तीक्ष्ण (दे ६।१४) ।
पत्ती- पत्तों की बनी हुई एक तरह की पगड़ी जिसे भील लोग पहनते हैं
( दे ६२ ) ।
पत्तुण्ण - वल्कल से बना हुआ वस्त्र (आचूला ५।१४) ।
पत्तुल्लक — भाजन- विशेष - सा तीए रुवाए पत्तुल्लकाणि धोवेंतीए मसिलित्तेण
हत्थे ' (दअचू पृ ४७) ।
पत्थर – पाद-प्रहार - एस परक्कपडीरो पत्थरकुसलेण पड्डुअं दिन्तो'
(दे ६८ वृ) ।
रभल्लिअ --कोलाहल करना ( दे ६ । ३६ ) ।
पत्थरा – चरण-घात, पाद-प्रहार ( दे ६१८ ) ।
पत्थरिअ – पल्लव, कोंपल ( दे ६।२० ) ।
पत्थार – विनाश- पत्थारो णाम कुल-गण-संघविणासो भण्णति'
( निचू १ पृ ११६) ।
पत्थारी – १ समूह । २ प्रस्तर, शैय्या ( दे ६।६६ ) । पथारी ( गुज ),
पथरणा ( राज) ।
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२६६
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पत्तउर-गुच्छ वनस्पति विशेष ( प्रज्ञा १ । ३६ ३) ।
पत्तंबेल्लि - खाद्य विशेष ( धंवि पृ ७१ ) ।
-
पत्तट्ठ- १ कुशल, बहु-शिक्षित (भ १४ । ३ ; दे ६।६८) । २ सुन्दर
( दे ६।६८) ।
पत्तण - १ बाण का अग्रभाग । २ पुंख, बाण का मूल भाग ( दे ६ ६४)
पत्तणा - १ पुंख में की जाने वाली रचना विशेष ( से ७१५२ ) । २ इषु-
फलक । ३ बाण का मूल भाग, पुंख ( से १५।७३ ) ।
पत्तपसाइआ–पत्तियों की एक तरह की पगड़ी जिसे भील लोग पहनते हैं
(दे ६।२ ) ।
पगड़ी जिसे भील लोग पहनते हैं
पत्तपिसालस-पत्तियों की एक तरह की
( दे ६।२ ) ।
पत्तरक-- आभूषण-विशेष (प्रटी प १४६) ।
पत्तल – १ तीक्ष्ण, तेज (औप ४७; दे ६ । १४ ) । २ कृश ( वृ ) ।
पत्तला – राजपत्र, अधिकार पत्र - समप्पिज्जंति सेवयाणं महापडिहारे हि
गाम - णयर खेडकब्बड पट्टणाणं पत्तलाओ त्ति' ( कुपृ १८ ) ।
पत्तवासित - बंधा हुआ (निचू ४ पृ २२१) ।
पत्तादार — श्रीन्द्रिय जन्तु विशेष ( प्रज्ञा १ । ५० )।
पत्तिसमिद्ध - तीक्ष्ण (दे ६।१४) ।
पत्ती- पत्तों की बनी हुई एक तरह की पगड़ी जिसे भील लोग पहनते हैं
( दे ६२ ) ।
पत्तुण्ण - वल्कल से बना हुआ वस्त्र (आचूला ५।१४) ।
पत्तुल्लक — भाजन- विशेष - सा तीए रुवाए पत्तुल्लकाणि धोवेंतीए मसिलित्तेण
हत्थे ' (दअचू पृ ४७) ।
पत्थर – पाद-प्रहार - एस परक्कपडीरो पत्थरकुसलेण पड्डुअं दिन्तो'
(दे ६८ वृ) ।
रभल्लिअ --कोलाहल करना ( दे ६ । ३६ ) ।
पत्थरा – चरण-घात, पाद-प्रहार ( दे ६१८ ) ।
पत्थरिअ – पल्लव, कोंपल ( दे ६।२० ) ।
पत्थार – विनाश- पत्थारो णाम कुल-गण-संघविणासो भण्णति'
( निचू १ पृ ११६) ।
पत्थारी – १ समूह । २ प्रस्तर, शैय्या ( दे ६।६६ ) । पथारी ( गुज ),
पथरणा ( राज) ।
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