देशीशब्दकोश /315
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देशी शब्दकोश
दाणामा- प्रव्रज्या का एक प्रकार। इसमें भिक्षु चार पुट वाला लकड़ी का
(पात्र लेकर भिक्षा के लिए जाता है। पहले पुट की भिक्षा पथिकों
के लिए, दूसरे की कौए कुत्तों के लिए, तीसरे की मच्छ-कच्छों के
( लिए और चौथे पुट की भिक्षा स्वयं के लिए होती है
( भ ३।१०२ ) ।
२४६
V
दादलिआ - अंगुली (दे ५१३८) ।
दामक – रुपया, मूल्य (व्यभा ४ । ३ टीप १० ) ।
दामणि -- स्त्री पुरुष के शरीरगत बत्तीस शुभ लक्षणों में से एक- दामणि त्ति
रूढिगम्यम्' (प्रटी प ८४ ) ।
दामणी – १ प्रसव । २ आंख, नयन ( दे ५१५२ ) ।
दायणा – दिखाना ( बृभा ६२६४) ।
दार--कटिसूत्र, कांची (दे ५।३८ ) ।
दारवंता-पेटी (दे ५१३८) ।
दारिआ - वेश्या ( दे ५११३८ ) ।
दाल - दाल (प्रटी प १४१ ) ।
दालि – १ रेखा (ओनि ३२४) । २ दाल, दला हुआ चना आदि अन्न ।
दालिअ – नेत्र, नयन ( दे ५। ३८ ) ।
दालिमपूसिक – पात्र विशेष ( अंवि पृ ६५ ) ।
दावर — द्वितीय, दूसरा द्वापरः इति समयपरिभाषया द्वितीयः'
(बृटी पृ ३३६ ) ।
दासय – फल - विशेष ( अंवि पृ २३८ )
।
दासि – नीले फूल वाली गुच्छ वनस्पति (प्रज्ञा ११३६।५ ) ।
दाहा - प्रहरण- विशेष (ज्ञा १११८ ३५ ) । दाव ( बंगला) ।
दिअ - - दिवस ( दे ५।३६ ) ।
दिअंड - प्रावरण- विशेष (अंवि पृ १६१) ।
दिअज्झ– स्वर्णकार, सुनार ( दे ५। ३६ ) ।
दिअधुत्त – कौआ (दे ५।४१ वृ) ।
दिअधुत्तअ- काक, कौआ (दे ५।४१) ।
दिअलिअ – मूर्ख ( दे ५।३१) ।
दिअली-- स्थूणा, खंभा (पा ३६०) ।
दिअसिअ - १ नित्य- भोजन ( दे ५१४०) । २ प्रतिदिन ( वृ ) ।
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दाणामा- प्रव्रज्या का एक प्रकार। इसमें भिक्षु चार पुट वाला लकड़ी का
(पात्र लेकर भिक्षा के लिए जाता है। पहले पुट की भिक्षा पथिकों
के लिए, दूसरे की कौए कुत्तों के लिए, तीसरे की मच्छ-कच्छों के
( लिए और चौथे पुट की भिक्षा स्वयं के लिए होती है
( भ ३।१०२ ) ।
२४६
V
दादलिआ - अंगुली (दे ५१३८) ।
दामक – रुपया, मूल्य (व्यभा ४ । ३ टीप १० ) ।
दामणि -- स्त्री पुरुष के शरीरगत बत्तीस शुभ लक्षणों में से एक- दामणि त्ति
रूढिगम्यम्' (प्रटी प ८४ ) ।
दामणी – १ प्रसव । २ आंख, नयन ( दे ५१५२ ) ।
दायणा – दिखाना ( बृभा ६२६४) ।
दार--कटिसूत्र, कांची (दे ५।३८ ) ।
दारवंता-पेटी (दे ५१३८) ।
दारिआ - वेश्या ( दे ५११३८ ) ।
दाल - दाल (प्रटी प १४१ ) ।
दालि – १ रेखा (ओनि ३२४) । २ दाल, दला हुआ चना आदि अन्न ।
दालिअ – नेत्र, नयन ( दे ५। ३८ ) ।
दालिमपूसिक – पात्र विशेष ( अंवि पृ ६५ ) ।
दावर — द्वितीय, दूसरा द्वापरः इति समयपरिभाषया द्वितीयः'
(बृटी पृ ३३६ ) ।
दासय – फल - विशेष ( अंवि पृ २३८ )
।
दासि – नीले फूल वाली गुच्छ वनस्पति (प्रज्ञा ११३६।५ ) ।
दाहा - प्रहरण- विशेष (ज्ञा १११८ ३५ ) । दाव ( बंगला) ।
दिअ - - दिवस ( दे ५।३६ ) ।
दिअंड - प्रावरण- विशेष (अंवि पृ १६१) ।
दिअज्झ– स्वर्णकार, सुनार ( दे ५। ३६ ) ।
दिअधुत्त – कौआ (दे ५।४१ वृ) ।
दिअधुत्तअ- काक, कौआ (दे ५।४१) ।
दिअलिअ – मूर्ख ( दे ५।३१) ।
दिअली-- स्थूणा, खंभा (पा ३६०) ।
दिअसिअ - १ नित्य- भोजन ( दे ५१४०) । २ प्रतिदिन ( वृ ) ।
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