2023-03-28 15:40:01 by श्री अयनः चट्टोपाध्यायः

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दाणामा -- प्रव्रज्या का एक प्रकार। इसमें भिक्षु चार पुट वाला लकड़ी का पात्र लेकर भिक्षा के लिए जाता है। पहले पुट की भिक्षा पथिकों के लिए, दूसरे की कौए कुत्तों के लिए, तीसरे की मच्छ-कच्छों के लिए और चौथे पुट की भिक्षा स्वयं के लिए होती है ( भ ३।१०२ ) ।
दादलिआ -- अंगुली ( दे ५।३८ ) ।
दामक -- रुपया, मूल्य ( व्यभा ४।३ टी प १० ) ।
दामणि -- स्त्री पुरुष के शरीरगत बत्तीस शुभ लक्षणों में से एक-दामणि त्ति रूढिगम्यम्' ( प्रटी प ८४ ) ।
दामणी -- १ प्रसव । २ आंख, नयन ( दे ५।५२ ) ।
दायणा -- दिखाना ( बृभा ६२६४ ) ।
दार -- कटिसूत्र, कांची ( दे ५।३८ ) ।
दारद्धंता -- पेटी ( दे ५।३८ ) ।
दारिआ -- वेश्या ( दे ५।३८ ) ।
दाल -- दाल ( प्रटी प १४१ ) ।
दालि -- १ रेखा ( ओनि ३२४ ) । २ दाल, दला हुआ चना आदि अन्न ।
दालिअ -- नेत्र, नयन ( दे ५।३८ ) ।
दालिमपूसिक -- पात्र-विशेष ( अंवि पृ ६५ ) ।
दावर -- द्वितीय, दूसरा - 'द्वापरः इति समयपरिभाषया द्वितीयः' ( बृटी पृ ३३९ ) ।
दासय -- फल-विशेष ( अंवि पृ २३८ ) ।
दासि -- नीले फूल वाली गुच्छ वनस्पति ( प्रज्ञा १।३६।५ ) ।
दाहा -- प्रहरण-विशेष ( ज्ञा १।१८।३५ ) । दाव ( बंगला ) ।
दिअ -- दिवस ( दे ५।३९ ) ।
दिअंड -- प्रावरण-विशेष ( अंवि पृ १६१ ) ।
दिअज्झ -- स्वर्णकार, सुनार ( दे ५।३९ ) ।
दिअधुत्त -- कौआ ( दे ५।४१ वृ ) ।
दिअधुत्तअ -- काक, कौआ ( दे ५।४१ ) ।
दिअलिअ -- मूर्ख ( दे ५।३९ ) ।
दिअली -- स्थूणा, खंभा ( पा ३६० ) ।
दिअसिअ -- १ नित्य-भोजन ( दे ५।४० ) । २ प्रतिदिन ( वृ ) ।