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ओरंपिअ
 
कोट्टिब
गणणाइआ
 
चिच्च
 
दोद्धिअ
 
माणंसी
 
आक्रान्त
 
नौका
 
द्रोणी,
चण्डी, पार्वती
 
कटिभाग
 
चर्मकूप, दृति
चंद्रवधू, वीरबहूटी कीट
 
साहंजण
 
गोखरू, एक पौधा
 
देशी शब्दों का भाषाशास्त्रीय अध्ययन
 
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Seiged
 
A Wooden tub
 
An angry woman
Charming
 
A pore of the skin
The wife of the
 
moon
 
A cow's hoof
 
आगम-साहित्य शब्दों का विपुल भंडार है । धार्मिक, ऐतिहासिक,
सामाजिक, भौगोलिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से तो इसका महत्व है ही, किन्तु
भाषाविज्ञान की दृष्टि से भी इसके अनेक शब्द तुलनीय एवं विमर्शणीय हैं ।
आगम में समागत अनेक देशी शब्द अर्वाचीन हिंदी, राजस्थानी, गुजराती,
मराठी, कन्नड, तमिल, तेलगु भाषा के शब्दों से तुलनीय हैं ।
 
भाषाविज्ञान की दृष्टि से प्रत्येक शब्द के अर्थ का उत्कर्ष एवं अपकर्ष होता
रहा है। डा० हजारीप्रसाद द्विवेदी के भाषा-विज्ञान सम्बन्धी ये विचार उल्लेख-
नीय हैं- -' शब्दों के अर्थ की ह्रास और विकास की कथा दीर्घकाल से चली आ
रही है । कुछेक शब्दों के अर्थ में विकास होता है, कुछेक का ह्रास और कुछेक
के अर्थ में विकार आ जाता है । 'वंश' शब्द का विकास 'बांस' अर्थ में हुआ,
किन्तु कुल के अर्थ में विकास न होकर 'वंश' शब्द ही बना रहा । इसी प्रकार
'पृष्ठ' शब्द का विकास / विकार 'पीठ' अर्थ के रूप में हुआ, पर पृष्ठ ( पन्ने )
के अर्थ में नहीं हुआ । 'पन्ने' के अर्थ में पृष्ठ शब्द ही प्रयुक्त होगा, पीठ नहीं ।
अमुक पुस्तक का पृष्ठ कहा जाएगा, पीठ नहीं । ' सूची' शब्द वस्त्र सीने के
उपकरण के रूप में 'सूई' बन गया, किन्तु 'विषय सूची' के लिए 'विषय सूई'
नहीं बन सका । इसी प्रकार शताधिक शब्दों की कहानी है ।'
 
किन्तु कुछ शब्द सैंकड़ों-हजारों वर्षों के बाद भी अपने मूल अर्थ को
सुरक्षित रखते हैं । आगमों में 'तुप्प' शब्द का अर्थ है— चुपड़ा हुआ, घी और
स्निग्ध । कन्नड भाषा में आज भी 'तुप्प' घी का वाचक है तथा मराठी में
घी के लिए 'तूप' शब्द का प्रयोग होता है। इसी प्रकार चिकनाहट या तेल
का वाचक 'चोप्पड' शब्द राजस्थानी एवं हिन्दी में आज भी प्रसिद्ध है ।
यद्यपि सभी शब्दों का भाषाशास्त्रीय अध्ययन करना संभव नहीं था कि अमुक
शब्द किस भाषा से आया है, किन्तु जहां भी हमें वर्तमान में प्रचलित अन्य
भाषा से संबंधित शब्दों की जानकारी मिली वहां उन शब्दों के आगे कोष्ठक
में हमने उस भाषा का उल्लेख किया है। नीचे कुछेक ऐसे शब्दों के उदाहरण
 
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