देशीशब्दकोश /283
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२१४
देशी शब्दकोश
गरव-पारे को बांधने वाला- 'जो उण बंधइ णिउणो रसं पि सो भण्णइ
गरिदो' (कु पृ १९७) ॥
णल – मत्स्य की एक जाति - रोहित पिचक-णल-मीण- चम्मिराजो'
-
( अंकि पृ २२८ ) ।
– खस का तृण (आवचू १ पृ ३७२) ।
गलथंभ-वृक्ष - विशेष - सुचिरंपि अच्छमाणो नलथंभो उच्छुवाडमज्झंमि ।
कीस न जायइ महुरो जइ संसग्गी पमाणं ते ॥'
(आवनि १११७ ) ।
णलक
णलय- -खस का तृण ( दे ४११६) ॥
गलिअ - गृह ( दे ४१२० ) ।
गल्लग - पात्र विशेष ( जंबूटीप १०० ) ।
-
णल्लय - १ कर्दमित, कीचडवाला । २ बाड का विवर । ३ प्रयोजन ।
४ निमित्त ( दे ४१४६) ।
गवणीइया–गुल्म वनस्पति विशेष ( प्रज्ञा १ ३८१३) ।
णवतय -- बिना पिंजी हुई ऊन से बना आस्तरण- विशेष (ज्ञा १ ॥ १।१८) ।
णवय - बिना पिंजी हुई ऊन से बना आस्तरण- विशेष - 'अत्थुरणं पाउरणं वा
अकत्तिय उन्नाए नवयं कज्जति' (निचू ३ पृ ३२१ ) ।
णवर -- १ केवल, सिर्फ (आचूला ११३४) । २ अनन्तर ।
णवरं – १ केवल, इसके अतिरिक्त - ' एवं जहा महब्बले, नवरं - गोयमो
नामेणं' (अंत १११७ ) । २ अनन्तर ( आवचू १ पृ २४६ ) ।
णवरि – १ केवल ( प्र ६।१ ) । २ अनन्तर ( से ११/६८ ) ।
णवरिअ – सहसा, शीघ्र ( दे ४।२२ ) ।
-
णवलय – व्रत - विशेष - ' दोलाविलाससमए पुच्छंतीहि सहीहि पइणामं ।
लठ्ठीहि हणिज्जंती वहुया णवलयवयं भरइ ॥ ( दे ४।२१ वृ) ।
देखें- 'णवलया' ।
णवलया - नियम-विशेष, जिसके अनुसार सभी लोग पलाश की लताएं लेकर
घूमते हैं तथा विभिन्न स्त्रियों को अपने-अपने पति का नाम पूछते
हैं । जो स्त्री अपने पति का नाम नहीं बताती, उसे पलाश की
लता से आहत करते हैं- 'जत्थ पलासलयाए जणेहि पडणाम
पुच्छिआ जुवई । अकहन्ती णिहणिज्जइ णिअमविसेसो णवलया
सा ।' (दे ४।२१) ।
णवसिअ – उपयाचितक, मनौती ( दे ४ । २२ वृ) ।
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देशी शब्दकोश
गरव-पारे को बांधने वाला- 'जो उण बंधइ णिउणो रसं पि सो भण्णइ
गरिदो' (कु पृ १९७) ॥
णल – मत्स्य की एक जाति - रोहित पिचक-णल-मीण- चम्मिराजो'
-
( अंकि पृ २२८ ) ।
– खस का तृण (आवचू १ पृ ३७२) ।
गलथंभ-वृक्ष - विशेष - सुचिरंपि अच्छमाणो नलथंभो उच्छुवाडमज्झंमि ।
कीस न जायइ महुरो जइ संसग्गी पमाणं ते ॥'
(आवनि १११७ ) ।
णलक
णलय- -खस का तृण ( दे ४११६) ॥
गलिअ - गृह ( दे ४१२० ) ।
गल्लग - पात्र विशेष ( जंबूटीप १०० ) ।
-
णल्लय - १ कर्दमित, कीचडवाला । २ बाड का विवर । ३ प्रयोजन ।
४ निमित्त ( दे ४१४६) ।
गवणीइया–गुल्म वनस्पति विशेष ( प्रज्ञा १ ३८१३) ।
णवतय -- बिना पिंजी हुई ऊन से बना आस्तरण- विशेष (ज्ञा १ ॥ १।१८) ।
णवय - बिना पिंजी हुई ऊन से बना आस्तरण- विशेष - 'अत्थुरणं पाउरणं वा
अकत्तिय उन्नाए नवयं कज्जति' (निचू ३ पृ ३२१ ) ।
णवर -- १ केवल, सिर्फ (आचूला ११३४) । २ अनन्तर ।
णवरं – १ केवल, इसके अतिरिक्त - ' एवं जहा महब्बले, नवरं - गोयमो
नामेणं' (अंत १११७ ) । २ अनन्तर ( आवचू १ पृ २४६ ) ।
णवरि – १ केवल ( प्र ६।१ ) । २ अनन्तर ( से ११/६८ ) ।
णवरिअ – सहसा, शीघ्र ( दे ४।२२ ) ।
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णवलय – व्रत - विशेष - ' दोलाविलाससमए पुच्छंतीहि सहीहि पइणामं ।
लठ्ठीहि हणिज्जंती वहुया णवलयवयं भरइ ॥ ( दे ४।२१ वृ) ।
देखें- 'णवलया' ।
णवलया - नियम-विशेष, जिसके अनुसार सभी लोग पलाश की लताएं लेकर
घूमते हैं तथा विभिन्न स्त्रियों को अपने-अपने पति का नाम पूछते
हैं । जो स्त्री अपने पति का नाम नहीं बताती, उसे पलाश की
लता से आहत करते हैं- 'जत्थ पलासलयाए जणेहि पडणाम
पुच्छिआ जुवई । अकहन्ती णिहणिज्जइ णिअमविसेसो णवलया
सा ।' (दे ४।२१) ।
णवसिअ – उपयाचितक, मनौती ( दे ४ । २२ वृ) ।
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