देशीशब्दकोश /283
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णरिदं -- पारे को बांधने वाला - 'जो उण बंधइ णिउणो रसं पि सो भण्णइ णरिंदो' ( कु पृ १९७ ) ।
णल -- मत्स्य की एक जाति - 'रोहित पिचक-णल-मीण- चम्मिराजो' ( अंकि पृ २२८ ) ।
णलक -- खस का तृण ( आवचू १ पृ ३७२ ) ।
गणलथंभ -- वृक्ष-विशेष - 'सुचिरंपि अच्छमाणो नलथंभो उच्छुवाडमज्झंमि' । कीस न जायइ महुरो जइ संसग्गी पमाणं ते ॥' ( आवनि १११७ ) ।
णलय -- खस का तृण ( दे ४।१९ ) ॥
णलिअ -- गृह ( दे ४।२० ) ।
णल्लग -- पात्र-विशेष ( जंबूटी प १०० ) ।
णल्लय -- १ कर्दमित, कीचडवाला । २ बाड का विवर । ३ प्रयोजन । ४ निमित्त ( दे ४।४६ ) ।
णवणीइया -- गुल्म वनस्पति-विशेष ( प्रज्ञा १।३८।३ ) ।
णवतय -- बिना पिंजी हुई ऊन से बना आस्तरण-विशेष ( ज्ञा १।१।१८ ) ।
णवय -- बिना पिंजी हुई ऊन से बना आस्तरण- विशेष - 'अत्थुरणं पाउरणं वा अकत्तिय उन्नाए नवयं कज्जति' ( निचू ३ पृ ३२१ ) ।
णवर -- १ केवल, सिर्फ ( आचूला १।३४ ) । २ अनन्तर ।
णवरं -- १ केवल, इसके अतिरिक्त - ' एवं जहा महब्बले, नवरं - गोयमो नामेणं' ( अंत १।१७ ) । २ अनन्तर ( आवचू १ पृ २४९ ) ।
णवरि -- १ केवल ( प्र ९।१ ) । २ अनन्तर ( से ११।६८ ) ।
णवरिअ -- सहसा, शीघ्र ( दे ४।२२ ) ।
णवलय -- व्रत-विशेष - 'दोलाविलाससमए पुच्छंतीहि सहीहिं पइणामं' । लट्ठीहिं हणिज्जंती वहुया णवलयवयं भरइ ॥ ( दे ४।२१ वृ ) । देखें - 'णवलया' ।
णवलया -- नियम-विशेष, जिसके अनुसार सभी लोग पलाश की लताएं लेकर घूमते हैं तथा विभिन्न स्त्रियों को अपने-अपने पति का नाम पूछते हैं । जो स्त्री अपने पति का नाम नहीं बताती, उसे पलाश की लता से आहत करते हैं- 'जत्थ पलासलयाए जणेहि पइणाम पुच्छिआ जुवई । अकहन्ती णिहणिज्जइ णिअमविसेसो णवलया
सा ।' ( दे ४।२१ ) ।
णवसिअ -- उपयाचितक, मनौती ( दे ४।२२ वृ ) ।
णल -- मत्स्य की एक जाति - 'रोहित पिचक-णल-मीण- चम्मिराजो' ( अंकि पृ २२८ ) ।
णलक -- खस का तृण ( आवचू १ पृ ३७२ ) ।
णलय -- खस का तृण ( दे ४।१९ ) ॥
णलिअ -- गृह ( दे ४।२० ) ।
णल्लग -- पात्र-विशेष ( जंबूटी प १०० ) ।
णल्लय -- १ कर्दमित, कीचडवाला । २ बाड का विवर । ३ प्रयोजन । ४ निमित्त ( दे ४।४६ ) ।
णवणीइया -- गुल्म वनस्पति-विशेष ( प्रज्ञा १।३८।३ ) ।
णवतय -- बिना पिंजी हुई ऊन से बना आस्तरण-विशेष ( ज्ञा १।१।१८ ) ।
णवय -- बिना पिंजी हुई ऊन से बना आस्तरण- विशेष - 'अत्थुरणं पाउरणं वा अकत्तिय उन्नाए नवयं कज्जति' ( निचू ३ पृ ३२१ ) ।
णवर -- १ केवल, सिर्फ ( आचूला १।३४ ) । २ अनन्तर ।
णवरं -- १ केवल, इसके अतिरिक्त - ' एवं जहा महब्बले, नवरं - गोयमो नामेणं' ( अंत १।१७ ) । २ अनन्तर ( आवचू १ पृ २४९ ) ।
णवरि -- १ केवल ( प्र ९।१ ) । २ अनन्तर ( से ११।६८ ) ।
णवरिअ -- सहसा, शीघ्र ( दे ४।२२ ) ।
णवलय -- व्रत-विशेष - 'दोलाविलाससमए पुच्छंतीहि सहीहिं पइणामं' । लट्ठीहिं हणिज्जंती वहुया णवलयवयं भरइ ॥ ( दे ४।२१ वृ ) । देखें - 'णवलया' ।
णवलया -- नियम-विशेष, जिसके अनुसार सभी लोग पलाश की लताएं लेकर घूमते हैं तथा विभिन्न स्त्रियों को अपने-अपने पति का नाम पूछते हैं । जो स्त्री अपने पति का नाम नहीं बताती, उसे पलाश की लता से आहत करते हैं- 'जत्थ पलासलयाए जणेहि पइणाम पुच्छिआ जुवई । अकहन्ती णिहणिज्जइ णिअमविसेसो णवलया
सा ।' ( दे ४।२१ ) ।
णवसिअ -- उपयाचितक, मनौती ( दे ४।२२ वृ ) ।