देशीशब्दकोश /27
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२६
शाम्ब – हेमचन्द्र इनके मत का उल्लेख करते हैं, पर इनके द्वारा रचित कोई
देशीकोश था, यह स्पष्ट नहीं है ।
शीलांक – हेमचन्द्र ने इनके मत का उल्लेख तीन स्थानों पर किया है । संभवतः
इन्होंने देशीकोश की रचना की थी ।
इन सभी देशी कोशकारों का इतिवृत्त और काल ज्ञात नहीं है ।
संभवतः इन सभी कोशकारों के देशीकोश हेमचन्द्र को प्राप्त थे और उन्होंने
इन सभी कोशों में रही अपर्याप्तताओं को निकालकर देशीनाममाला को
समृद्ध बना
का प्रयत्न किया है । यह तो सुनिश्चित है कि हेमचन्द्र से पूर्व
प्रणीत देशी कोशों से हेमचन्द्र का प्रस्तुत देशीकोश विशिष्ट व्यवस्थित और
शब्द के सही अर्थ को प्रकट करने में सक्षम है ।
देशीनाममाला : एक परिचय
देशीनाममाला देशी शब्दों का विशिष्ट कोश है । आचार्य हेमचन्द्र ने
इसके प्रारम्भ में लिखा है-
देशी दुःसन्दर्भा प्राय: संदर्भिताऽपि दुर्बोधा ।
आचार्य हेमचन्द्रस्तत् तां संदृभति विभजति च ॥
देशी शब्दों का चयन करना, उनके सन्दर्भों की समीचीनता को
ढूंढना तथा उनके अर्थों के अवबोध को निश्चित करना दुरूह कार्य है ।
इसकी रचना आचार्य हेमचन्द्र ने अपने व्याकरण ग्रंथ
सिद्ध हे शब्द नुशासन के अष्टम अध्याय की पूर्ति के लिए की । आचार्य हेमचन्द्र
ने इस कोश के दो नामों का उल्लेख किया है – देसीसहसंगहो, रयणावली ।'
किन्तु इन दोनों नामों के अतिरिक्त प्रत्येक अध्याय के बाद पुष्पिका
में 'देशीनाममाला' नाम भी मिलता है ।
इसके रचनाकाल के बारे में भी भिन्न-भिन्न मान्यताएं हैं । यह तो
स्पष्ट है कि इसकी रचना आचार्य हेमचन्द्र ने सिद्ध हेमशब्दानुशासन तथा
संस्कृत के कोशों— अभिधान चिंतामणि, अनेकार्थं संग्रह आदि के पश्चात् की ।
डा० बूलर के अनुसार देशीनाममाला की रचना वि० सं० १२१४-१५ में
होनी चाहिए । यह मत विद्वानों में मान्य भी है ।
डॉ. भयाणी ने अपने लेख में देशीनाममाला के अनेक शब्दों की
२
संस्कृत छाया करके उनको तद्भव या तत्सम माना है ।
१. देशीनाममाला, ८१७७ :
इय रयणावलीणामो, देसीसद्दाण संगहो एसो ।
वायरणसेसलेसो, रइओ सिरिहेमचन्दमुणिवइणा ॥
२. कालूगणि स्मृति ग्रंथ, संस्कृत प्राकृत जैन व्याकरण कोश की परम्परा,
पू ८३-१०७ ।
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शाम्ब – हेमचन्द्र इनके मत का उल्लेख करते हैं, पर इनके द्वारा रचित कोई
देशीकोश था, यह स्पष्ट नहीं है ।
शीलांक – हेमचन्द्र ने इनके मत का उल्लेख तीन स्थानों पर किया है । संभवतः
इन्होंने देशीकोश की रचना की थी ।
इन सभी देशी कोशकारों का इतिवृत्त और काल ज्ञात नहीं है ।
संभवतः इन सभी कोशकारों के देशीकोश हेमचन्द्र को प्राप्त थे और उन्होंने
इन सभी कोशों में रही अपर्याप्तताओं को निकालकर देशीनाममाला को
समृद्ध बना
का प्रयत्न किया है । यह तो सुनिश्चित है कि हेमचन्द्र से पूर्व
प्रणीत देशी कोशों से हेमचन्द्र का प्रस्तुत देशीकोश विशिष्ट व्यवस्थित और
शब्द के सही अर्थ को प्रकट करने में सक्षम है ।
देशीनाममाला : एक परिचय
देशीनाममाला देशी शब्दों का विशिष्ट कोश है । आचार्य हेमचन्द्र ने
इसके प्रारम्भ में लिखा है-
देशी दुःसन्दर्भा प्राय: संदर्भिताऽपि दुर्बोधा ।
आचार्य हेमचन्द्रस्तत् तां संदृभति विभजति च ॥
देशी शब्दों का चयन करना, उनके सन्दर्भों की समीचीनता को
ढूंढना तथा उनके अर्थों के अवबोध को निश्चित करना दुरूह कार्य है ।
इसकी रचना आचार्य हेमचन्द्र ने अपने व्याकरण ग्रंथ
सिद्ध हे शब्द नुशासन के अष्टम अध्याय की पूर्ति के लिए की । आचार्य हेमचन्द्र
ने इस कोश के दो नामों का उल्लेख किया है – देसीसहसंगहो, रयणावली ।'
किन्तु इन दोनों नामों के अतिरिक्त प्रत्येक अध्याय के बाद पुष्पिका
में 'देशीनाममाला' नाम भी मिलता है ।
इसके रचनाकाल के बारे में भी भिन्न-भिन्न मान्यताएं हैं । यह तो
स्पष्ट है कि इसकी रचना आचार्य हेमचन्द्र ने सिद्ध हेमशब्दानुशासन तथा
संस्कृत के कोशों— अभिधान चिंतामणि, अनेकार्थं संग्रह आदि के पश्चात् की ।
डा० बूलर के अनुसार देशीनाममाला की रचना वि० सं० १२१४-१५ में
होनी चाहिए । यह मत विद्वानों में मान्य भी है ।
डॉ. भयाणी ने अपने लेख में देशीनाममाला के अनेक शब्दों की
२
संस्कृत छाया करके उनको तद्भव या तत्सम माना है ।
१. देशीनाममाला, ८१७७ :
इय रयणावलीणामो, देसीसद्दाण संगहो एसो ।
वायरणसेसलेसो, रइओ सिरिहेमचन्दमुणिवइणा ॥
२. कालूगणि स्मृति ग्रंथ, संस्कृत प्राकृत जैन व्याकरण कोश की परम्परा,
पू ८३-१०७ ।
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