देशीशब्दकोश /265
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जोइर– -- स्खलित ( दे ३।४९ ) ।
जोइल्लय –-- कीट - -विशेष, इन्द्रगोप ( आवचू २ पृ ८३ ) ।
जोइस -- नक्षत्र ( दे ३।४९ ) ।
जोई- -- विद्युत् ( दे ३।४९ ) ।
जोक्ख -- मलिन ( दे ३।४८ ) ।
जोग्गा -- चाटु, खुशामद ( दे ३।४८ ) ।
जोड –-- १ नक्षत्र ( दे ३।४९ ) । २ रोग विशेष । ३ जोड़ी, युगल ।
जोडिअ -- १ व्याध, शिकारी ( दे ३।४९ ) । २ जोड़ा हुआ, संयुक्त किया
-
हुआ।
जोडिऊण -- जोड़कर, संयुक्त कर - 'जोडिऊण करजुयलं कहिओ सुविणगवइयरो'
( ( उसुटी प ६३) ।
) ।
जोण्णलिआ— -- धान्य -विशेष, जुआरि ( दे ३।५० ) ।
जोय –जोय -- युग्म, जोड़ा ( भ ११।१५९ ) ।
जोयण –जोयण -- देखना ——- 'उवओग चंदजोयण, साहुत्ति विगिंचणे णाणं'
( ( जीभा १४१७) ।
देशी शब्दकोश
) ।
जो रं - वाक्य के आदि में प्रयुक्त 'जो' का अर्थ है - यह तथा 'रं' का अर्थ है-
- निश्चय - 'जो रं च जो किरत्थम्मि' ( दे ३।४८) ।
जोव ) ।
जोव -- १ बिन्दु । २ अल्प ( दे ३।५२ ) ।
जोवणजोवण -- १ यन्त्र । २ धान्य का मर्दन । ३ धान की बुवाई - 'जोवणं-धान्य-
प्रकरः । प्रकरो मर्दनं धान्यस्य, लाटविषये जोवणं धण्णपइरणं
भण्णइ ' ( ओटी पृ १६६) ।
) ।
जोवारि–-- धान्य-विशेष, जुआरि ( दे ३।५० ) - ('जोवारी शब्दोऽपि देश्य एव ( वृ) ॥ ) ।
जोव्वण -- मध्य भाग ( से २।१ ) ।
जोव्वणणीर -- वृद्धत्व, बुढ़ापा ( दे ३१।५१ ) - जोव्वणणीरं तरुणत्तणे
विजिएन्दिआण पुरिसाण' ( वृ ) ।
जोव्वणवेअ -- बुढ़ापा, वृद्धत्व ( दे ३१।५१ ) ॥
।
जोव्वणोवय- -- बुढ़ापा, वृद्धत्व ( दे ३१।५१ ) ।
जोहार -- जयकार, नमस्कार - 'जयोत्कारकरणं पित्रादीनाम्'
( प्रसाटी प १०५ ) ।
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जोई
जोक्ख -- मलिन ( दे ३।४८ ) ।
जोग्गा -- चाटु, खुशामद ( दे ३।४८ ) ।
-
(
जोण्णलिआ
जोय –
जोयण –
(
देशी शब्दकोश
जो रं - वाक्य के आदि में प्रयुक्त 'जो' का अर्थ है - यह तथा 'रं' का अर्थ है
जोव
जोव -- १ बिन्दु । २ अल्प ( दे ३।५२ ) ।
जोवण
जोवारि
जोव्वण -- मध्य भाग ( से २।१ ) ।
जोव्वणोवय
जोहार -- जयकार, नमस्कार - 'जयोत्कारकरणं पित्रादीनाम्'
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