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चालावहि ( चलवाये), चलु (चलो), फिरइ, गइय, देइ, बुलावइ, खायइ,
खुल्लय (खुला हुआ) इत्यादि ।
 
देशी कोशकार
 
आज तक कितने देशी कोशकार हुए हैं, इसका ठीक-ठीक संकलन
करना इतिहास की दृष्टि से अत्यन्त दुरूह कार्य है । वर्तमान में देशी शब्दों का
सबसे बड़ा कोश आचार्य हेमचन्द्र का मिलता है । त्रिविक्रम ने अपने प्राकृत
शब्दानुशासन में लगभग १६०० देशी शब्दों का उल्लेख किया है । धनपाल ने
पाइयलच्छीनाममाला में प्राकृत शब्दों के साथ कुछ देशी शब्दों का संग्रहण भी
किया है। आचार्य हेमचन्द्र ने अनेक देशी कोशकारों का नामोल्लेख अपने
ग्रन्थ – देशी नाममाला में स्थान-स्थान पर किया है। उनका संक्षिप्त परिचय
इस प्रकार है-
अभिमानचिन्ह – इनका देशीकोश सूत्रात्मक था । इन्होंने शब्दसूची और उदा-
हरणों से शब्दों के अर्थ को स्पष्ट करने का प्रयास किया ।
इन सूत्रों की व्याख्या विद्वान् उदूखल ने की थी ।
 
अवन्तिसुन्दरी - यह भी कोई विदूषी महिला थी, जिसने प्राकृत में काव्य
रचना कर, उसमें अनेक देशी शब्दों को प्रयुक्त किया था ।
इसके विषय में पर्याप्त जानकारी नहीं है ।
 
गोपाल – इन्होंने देशी शब्दकोश की श्लोकबद्ध रचना कर संस्कृत में उन शब्दों
का अर्थ किया था। अनेक देशीकारों ने इनका उल्लेख किया है ।
 
देवराज – इन्होंने छन्दबद्ध देशीकोश की रचना की और शब्दों के अर्थ प्राकृत
में दिये । इनका सम्पूर्ण कोश शब्दों की प्रकृति के आधार पर
प्रकरणों में विभाजित था ।
 
द्रोण – इन्होंने देशीकोश की रचना अवश्य की थी और शब्दों का अर्थ प्राकृत
भाषा में प्रस्तुत किया था । परन्तु उस ग्रन्थ का स्वरूप अज्ञात है ।
धनपाल ——– संभवतः पाइअलच्छीनाममाला के कर्त्ता धनपाल से ये भिन्न थे ।
इनका देशी कोश हेमचन्द्र के समय में प्रचलित रहा हो - ऐसी
संभावना है । इनका विशेष परिचय ज्ञात नहीं है ।
 
पादलिप्ताचार्य - हेमचन्द्र के अनुसार ये भी देशीकोश के रचयिता थे । यह
सम्भावना की जाती है कि इनके कोशगत विवरण से हेमचंद्र
पूर्ण सहमत थे ।
 
राहुलक - इनके द्वारा रचित देशीकोश की कोई विश्वस्त जानकारी प्राप्त
नहीं है । 'टोल' शब्द के सन्दर्भ में हेमचन्द्र इनके मत को स्वीकार
कर, अन्यान्य कोशकारों के अर्थ का प्रतिषेध करते हैं। संभवतः
इनका कोई कोश रहा हो ।
 
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