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भाषाएं कौन-सी थीं-- आगमों में इसका स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता। बृहत्कल्प
भाष्य की टीका में मगध, मालव, महाराष्ट्र, लाट, कर्णाट, द्रविड़, गोड और
विदर्भ आदि देशों में बोली जाने वाली भाषाओं को देशी कहा गया है । '
कुवलयमाला में विजयपुरी के बाजार में एकत्रित अठारह देशों के व्यापारियों
के मुंह से अपने-अपने देश की भाषा के शब्द कहलवाये हैं। उनके उदाहरण
इस प्रकार हैं-
देश
 
९. गोल्ल
 
२. मध्यप्रदेश
 
३. मगध
 
४. अन्तर्वेद
 
५. कीर ( कश्मीर )
 
६. ढक्क (पंजाब)
७. सिन्ध
 
भाषा-शब्द
 
अडड
 
तेरे मेरे आउ
 
एगे ले
 
कित्तो किम्मो
 
सरि पारि"
 
एहं तेहं
 
चउडय मे¨
 
1
 
२. कुवलयमाला, पृष्ठ १५२, १५३ :
 
अर्थ
 
पशुओं को हांकने का शब्द
तेरे, मेरे, आओ
 
ऐसे ले ( ? )
 
यहां-वहां,
 
सुन्दर ( ? )
 
१. बृहत्कल्पभाष्य, टोका पृ ३८२ :
 
नानाप्रकारा– मगध-मालव-महाराष्ट्र-लाट-कर्णाट-द्रविड-गौड - विदर्भादि
देशभवा या देशीभाषा:
 
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१. कसिणे गिट्ठरवयणे बहुक-समर-भुंजए अलज्जे य ।
'अडडे' त्ति उल्लवंते अह पेच्छइ गोल्लए तत्थ ॥
 
२. जय-णीइ - संधि-विग्गह-पडुए बहुजंपए य पयईए ।
'तेरे मेरे आउ' त्ति जंपिरे मज्झदेसे य ॥
 
यह वह
 
३. णीहरिय- पोट्ट-दुःवण्ण-मडहए-सुरय-केलि-तल्लिच्छे ।
'एगे ले' जंपुल्ले अह पेच्छइ मगहे कुमरो ॥
४. कविले पिंगलणयणे भोयणकहमेत्तदिण्णवावारे ।
'कित्तो किम्मो' पिय-जंपिरे य अह अंतवेए य ।
५. उत्तुंग -त्थूल-घोणे कणयव्वण्णे य भार वाहे य ।
'सरि पारि' जंपिरे रे कोरे कुमरो पलोएइ ॥
दक्खिण्ण-दाण-पोरुस-विण्णाण-दया-विवज्जिय-सरीरे ।
'एहं तेहं' चवंते ढक्के उण पेच्छए कुमरो ॥
७. सललिय - मिउ - मद्दवए गंधध्व-पिए सदेसगयचित्ते ।
'चउडय में' भणिरे सुहए अह सेंधवे ट्ठेि ॥
 
६.
 
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