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खव्व -१ बायां हाथ । २ गधा ( दे २१७७ ) ।
 
खव्वुल्ल – मुख ( दे २१६८ ) ।
 
खसर — रोग-विशेष, खुजली (जंबू २ । १३३) ।
 
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खस्सिअ
 
– टखनों तक पहना जाने वाला जूता- 'उर्वरितला मे फुटुंति ।
खस्सिताओ से कताओ' (दअचू पृ ४१) ।
 
.१ वाक्यालंकार में प्रयुक्त अव्यय । २ पुनः अर्थ का सूचक अव्यय- 'से
कहि खाइ णं भंते ! सिद्धा परिवसंति ?' (औप १९२ ) । ३ परिखा
( आव १ पृ ३६ ) ।
 
खाइआ – १ परिखा (दे २ ७३) ।
 
खाई – वाक्यालंकार के रूप में प्रयुक्त अव्यय- से केणं खाईं अट्ठेणं भंते !
एवं वुच्चइ' (भ १७५२१) ।
 
खाइ-
खाइणं – वाक्यालंकार में प्रयुक्त अव्यस- 'खाइणं ति देशी-भाषया वाक्यालंकारे'
( औपटी पृ २१८ ) ।
 
देशी शब्दकोश
 
खाइया – खाई, खातिका ( भ ५। १६६ ) ।
 
खाखट्टिका - सेवई आदि खाद्य पदार्थ विशेष ( अंवि पृ १८२) ।
खाडइअ – प्रतिफलित (दे २,७३) ।
 
खाडइला – गिलहरी, वह प्राणी जिसके शरीर पर काली और श्वेत धाराएं
होती हैं (नंदी ३८१४) ।
 
खाडलिल्ल – गिलहरी ( प्रटी प १० ) ।
खाडहिला - गिलहरी ( प्र ११८ ) ।
खाडहिल्ला - गिलहरी ( उपाटी पृ १६ ) ।
खाडहेल्ला - गिलहरी ( आवहाटी १पृ २७८)।
 
खात - १ भूमिगृह (निचू १ पृ ११४) । २ कूप, बावड़ी आदि
( आवटि ५८ ) ।
 
खातिका – खाई, परिखा ( प्र १।१४) ।
 
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खातोदग - खुदे हुए जलाशय का पानी ( भ १५।१८६ ) ।
 
खायं –– वाक्यालंकार में प्रयुक्त अव्यय- 'तो खायं अहमवि ओलग्गामि
( बृटी पृ ५३ ) ।
खायर — खदिर वृक्ष सम्बंधी -
 
खायरो य सूलो....पादो छिज्जए'
 
(निचू १ पृ १६) ।
 
खार - गायों के विचरण करने का वह स्थान जहां तिक्त कुंतल आदि जलाए
जाते हैं, जिससे कि गायों के कीट-जन्य उपद्रव शांत हो जाएं -
 
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