2023-03-03 07:27:10 by श्री अयनः चट्टोपाध्यायः

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कोसय -- लघु शराव ( दे २।४७ ) ।
कोसल -- नीवी ( दे २।३८ ) ।
कोसलिअ -- भेंट, उपहार ( दे २।१२ ) ।
कोसलिआ -- भेंट ( दे २।१२ वृ ) ।
कोसल्ल -- उपहार, भेंट - 'तं पुरजणकोसल्लं, नरवइणा अप्पियं कुमारस्स' ( उसुटी प ८६ ) ।
कोसल्लिअ -- भेंट, उपहार ( दे २।१२ वृ ) ।
कोसेज्जा -- टसर, सूती वस्त्र - 'कोसेज्जा वडओ भण्णति' ( निचू २ पृ ६८; दे २।३३ ) ।
कोहलिआ -- कुष्मांडी, कोहंडा का गाछ ( पा ३७२ ) ।
कोहल्ली -- तापिका, तवा ( दे २।४६ ) ।
कोहिल्ल -- क्रोधी ( ओटी पृ २१६ ) ।
 

 
खइय -- स्वभाव ( स्थाटी प २६२ ) ।

खइव -- स्वभाव - 'खइव त्ति संवेगशुन्यधर्मकथनलक्षणो हेवाकः स्वभावो यस्यां सा तथा' ( स्थाटी प २६२ ) ।
खउर -- १ तापसों का पात्र-विशेष ( बृभा ३४५ ) । २ खैर आदि का गोंद ( निचू ४ पृ ६७ ) । ३ नीच- असूयपुत्ता ! खउरपुत्ता ! सुट्ठु अक्कोसामि' ( आवहाटी १ पृ १४१ ) । ४ कलुषित - 'दरदट्ठविवण्णविद्दुमरअक्खउरा' ( से ५।४७ ) । ५ व्याप्त ( से ६।११ ) ।
खउरकढिणय -- तापसों का उपकरण-विशेष, जो बांस, शुम्ब आदि द्रव्यों को अत्यंत कूट-पीसकर कमठ के आकार का बनाया जाता है । उसको बिल्व और भिलावे के रस से लिप्त कर देने पर उसमें से पानी भी परिस्रवित नहीं होता ( नंदीटि पृ १०५ ) ।
खउरल्लिय -- कलुषित, लिप्त ( जीभा ७०५ ) ।
खउरित -- निर्भर्त्सित, तिरस्कृत - 'खउरिता खरंटिता रोषेणेत्यर्थः' ( निचू २ पृ २६२ ) ।
खउरिय -- १ कलुषित ( बृभा ३७३० ) । २ मुण्डित । ३ धवलित ( से १०।४३ ) ।