देशीशब्दकोश /197
This page has been fully proofread once and needs a second look.
कोसय –-- लघु शराव ( दे २।४७ ) ।
कोसल - - नीवी ( दे २।३८ ) ।
कोसलिअ –-- भेंट, उपहार ( दे २ । ।१२ ) ।
कोसलिआ -- भेंट ( दे २ । ।१२ वृ) ।
) ।
कोसल्ल–-- उपहार, भेंट - ' तं पुरजणकोसल्लं, नरवइणा अप्पियं कुमारस्स'
( उसुटी प ८६ ) ।
कोसल्लिअ—— -- भेंट, उपहार ( दे २ । ।१२ वृ) ।
) ।
कोसेज्जा -- टसर, सूती वस्त्र -
- 'कोसेज्जा वडओ भण्णति'
( ( निचू २ पृ ६८; दे २ । ।३३ ) ।
कोहलिआ– -- कुष्मांडी, कोहंडा का गाछ ( पा ३७२ ) ।
कोहल्ली–-- तापिका, तवा ( दे २।४६ ) ।
कोहिल्ल— -- क्रोधी ( ओटी पृ २१६ ) ।
ख
देशी शब्दकोश
खइय –-- स्वभाव ( स्थाटी प २६२ ) ।
खइव– -- स्वभाव –- 'खइव त्ति संवेगशुन्यधर्मकथनलक्षणो हेवाकः स्वभावो यस्यां
सा तथा' ( स्थाटी प २६२ ) ।
Jain Education International
खउर- -खउर -- १ तापसों का पात्र - -विशेष ( बृभा ३४५ ) । २ खैर आदि का गोंद
( ( निचू ४ पृ ६७ ) । ३ नीच- असूयपुत्ता
! खउरपुत्ता ! सुट्ठु
अक्कोसामि' ( आवहाटी १ पृ १४१ ) । ४ कलुषित - 'दरदट्ठविवण्ण-
विद्दुमरअक्खउरा' ( से ५।४७ ) । ५ व्याप्त ( से ६ । ११ ) ।@@
।११ ) ।
खउरकढिणय–-- तापसों का उपकरण- विशेष, जो बांस, शुम्ब आदि द्रव्यों को
अत्यंत कूट-पीसकर कमठ के आकार का बनाया जाता है ।
उसको बिल्व और भिलावे के रस से लिप्त कर देने पर
उसमें से पानी भी परिस्रवित नहीं होता ( नंदीटि पृ १०५ ) ।
खउरल्लिय –-- कलुषित, लिप्त ( जीभा ७०५)।
) ।
खउरित -- निर्भर्त्सित, तिरस्कृत- - 'खउरिता खरंटिता रोषेणेत्यर्थः'
( निचू २ पृ २६२ ) ।
खउरिय –-- १ कलुषित ( बृभा ३७३० ) । २ मुण्डित । ३ धवलित
( ( से १०।४३ ) ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
कोसल -
कोसलिआ -- भेंट ( दे २
कोसल्ल
कोसल्लिअ
कोसेज्जा -- टसर, सूती वस्त्र -
-
(
कोहलिआ
कोहल्ली
कोहिल्ल
ख
खइव
Jain Education International
खउर- -
(
खउरकढिणय
खउरित -- निर्भर्त्सित, तिरस्कृत
(
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org