2023-03-03 04:25:12 by श्री अयनः चट्टोपाध्यायः

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कोली -- मकड़ी ( अंवि पृ ६९ ) ।
कोलीर -- हिंगुल, कुरुविन्द ( दे २।४६ ) ।
कोलेज्जय -- नीचे गोल और ऊपर खाई के आकार का धान्य-कोष्ठक ( आचू पृ ३३९ ) ।
कोलेज्जा -- नीचे से वृत्त और ऊपर से खाई के आकार का धान्य भरने का कोठा ( आचूला १।८९ पा ) ।
कोल्ल -- १ शृगाल ( निभा १३४९ ) । २ कोयला ( निचू १ ) ।
कोल्लर -- १ हौदा ( भटी पृ ७३० ) । २ पिठर, स्थाली ( औपटी पृ ११२; दे २।४७ ) ।
कोल्लु -- कोल्हू ( बृभा ५७५ ) ।
कोल्लुक -- कोल्हू ( बूटी पृ १६७ ) ।
कोल्लुग -- सियार - 'कोल्लुगा णाम सिगाला' ( निचू २ पृ १७९ ) ।
कोल्हाहल -- कुन्दरुन का फल, बिंबीफल ( दे २।३९ ) - 'दट्ठु कुंदीरोट्ठिं पहिआ कोल्हाहलाइ चुण्टन्ति' ( वृ ) ।
कोल्हुक -- गीदड़ ( आवचू १ पृ ४६५ ) ।
कोल्हुग -- १ कोल्हू ( निचू ४ पृ ४३५ ) । २ सियार ( उसुटी प १८६ ) ।
कोल्हुय -- १ शृगाल, सियार ( उसुटी प १८६; दे २।६५) । २ कोल्हू, चरखी ( दे २।६५ ) ।
कोविआ -- शृगाली ( दे २।४९ ) ।
कोविडाल -- वृक्ष-विशेष ( अंवि पृ ६३ ) ।
कोविराल -- वृक्ष की एक जाति ( अंबि पृ ६३ ) ।
कोवीण -- एक प्रकार का कल्पवृक्ष जो आभरण देता है ( ति ५६ ) ।
कोस -- १ अंगुलियों एवं अंगुष्ठ को आच्छादित करने वाला जूता ( निचू २ पृ८७ ) । २ कुसुभ रंग से रंगा हुआ वस्त्र । ३ समुद्र ( दे २।६५ ) ।
कोसग -- १ उपकरण- विशेष (जीभा १७७२) । २ नाखूनों की सुरक्षा के लिए अंगूठे और अंगुलियों को आच्छादित करने वाला उपकरण - 'कोसग नहरक्खट्ठा' ( बृभा २८८५ ) ।
कोसट्ट -- आवरण, कोश - 'रुहिरे उप्पन्ना किमितो तत्थेव मलेत्ता कोसट्टं उत्तारेत्ता' ( अनुद्वाचू पृ १५ ) ।
कोसट्टइरिआ -- चंडी, पार्वती ( दे २।३५ ) ।