2023-03-03 04:24:50 by श्री अयनः चट्टोपाध्यायः

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देशी शब्दकोश
 
कोली -- मकड़ी ( अंवि पृ ६९ ) ।

कोलीर -- हिंगुल, कुरुविन्द ( दे २४६ ) ।
 
-

कोलेज्जय -- नीचे गोल और ऊपर खाई के आकार का धान्य-कोष्ठक
(
( आचू पृ ३३९ ) ।

कोलेज्जा -- नीचे से वृत्त और ऊपर से खाई के आकार का धान्य भरने
का कोठा ( आचूला १।८९ पा ) ।
@
कोल्ल -- १ शृगाल ( निभा १३४) । २ कोयला ( निचू १ ) ।

कोल्लर -- १ हौदा ( भटी पृ ७३० ) । २ पिठर, स्थाली ( औपटी पृ ११२;
दे २४७) ।
 
१२७
) ।
कोल्लु -- कोल्हू ( बृभा ५७५ ) ।
कोल्लुक ––-- कोल्हू ( बूटी पृ १६७ ) ।

कोल्लुग––
-- सियार- - 'कोल्लुगा णाम सिगाला' ( निचू २ पृ १७९ ) ।
कोल्हाहल -- कुन्दरुन का फल, बिबिंबीफल ( दे २ ) - 'दट्ठु कुंदी रोट्
ठिं पहिआ कोल्हाहलाइ चुण्टन्ति' ( वृ ) ।

कोल्हुक -- गीदड़ ( आवचू १ पृ ४६५) ।
) ।
कोल्हुग -- १ कोल्हू ( निचू ४ पृ ४३५ ) । २ सियार ( उसुटी प १८६) )
कोल्हुय -- १ शृगाल, सियार ( उसुटी प १८६; दे २६५) । २ कोल्हू,
चरखी ( दे २६५ )
 
,

कोविआ -- शृगाली ( दे २६) ।
९ ) ।
कोविडाल- -- वृक्ष-विशेष ( अंवि पृ ६३ ) ।
कोविराल -- वृक्ष की एक जाति ( अंबि पृ ६३ ) ।

कोवीण -- एक प्रकार का कल्पवृक्ष जो आभरण देता है ( ति ५६ ) ।
कोस -- १ अंगुलियों एवं अंगुष्ठ को आच्छादित करने वाला जूता
 
( निचू २ पृ८७ ) । २ कुसुभ रंग से रंगा हुआ वस्त्र । ३ समुद्र
( दे २६५ ) ।

कोसग -- १ उपकरण- विशेष (जीभा १७७२) । २ नाखूनों की सुरक्षा के
लिए अंगूठे और अंगुलियों को आच्छादित करने वाला उपकरण-
- 'कोसग नहरक्खट्ठा' ( बृभा २८८५) ।
) ।
कोसट्ट -- आवरण, कोश - 'रुहिरे उप्पन्ना किमितो तत्थेव मलेत्ता कोसट्
टं उत्तारेत्ता' ( अनुद्वाचू पृ १५ ) ।

को
कोसट्टइरिआ -- चंडी, पार्वती ( दे २ ३५ ) ।
 
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