2023-03-02 18:27:00 by श्री अयनः चट्टोपाध्यायः

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कोयवय -- रजाई ( ज्ञा १।१७।२२ ) ।
कोयवी -- १ रूई की रजाई ( जीभा १७७० ) । २ सिल्हक का सूता ( निभा ४००२ ) ।
कोयहा -- रजाई, रूई से भरे हुए कपड़े का बना प्रावरण ( आचूला ५।१४ ) ।
कोयासिय -- विकसित ( औप १९ ) ।
कोरण -- पात्र आदि का मुंह बांधना-भायणस्स मुहकोरणे णिक्कोरणे वा' ( निचू ३ पृ ४७२ ) ।
कोरिल्लय -- पुराना, जीर्ण-शीर्ण - 'कोरिल्लएणं धणुणा कोरिल्लयाए जीवाए कोरिल्लएणं उसुणा' ( राज ७५ ) ।
कोल -- ग्रीवा, गला ( सू १।५।९ ; दे २।४५ ) ।
कोलंब -- १ पर्वत का अग्रभाग - 'गिरिकडकोलंब' ( ज्ञा १।१८।१८ ) । २ पात्र विशेष - 'कट्ठकोलंबए इ वा ( अनु ३।३७; दे २।४७ ) । ३ गुफा का प्रान्त-भाग ( विपा १।३।६ ) ।
कोलक -- वनस्पति-विशेष ( अंवि पृ २३१ ) ।
कोलज्जा -- नीचे गोल और ऊपर से खाई के आकार का धान्य-कोष्ठक ( आचूला १।८९ ) ।
कोलथ -- धान्य-विशेष ( अंवि पृ २२० )।
कोलवाल -- डोरा - 'मोत्तियं आइण्णंतो आगासे उक्खिवित्ता तहा णिक्खिवइ जहा कोलवाले पडइ' ( आवहाटी १ पृ २८५ ) ।
कोलाहल -- १ पक्षियों का कलरव ( भ ७।११७; दे २।५० ) ।
कोलिक -- १ अधम जाति का मनुष्य - 'न व्यत्याम्रेडितं कोलिकपायसवत्' ( अनुवाहाटी पृ ९ ) । २ मकड़ी, जाल का कीड़ा ( अंवि पृ २३७ ) ।
कोलिज्जा -- नीचे गोल और ऊपर खाई के आकार का धान्य-कोष्ठक ( आचूला १।८९ पा ) ।
कोलित -- तंतुवाय, जुलाहा ( नंदीटि पृ १३९ ) ।
कोलित्त -- अलात, अधजली लकड़ी ( दे २।४९ ) ।
कोलिय -- १ जुलाहा, तन्तुवाय ( नंदी ३८।९ ; दे २।६५ ) । २ जाल बनाने वाला कीड़ा, मकड़ा ( बृभा १७०७; दे २।२५ ) ।
कोलियग -- जाल बनाने वाला कीड़ा, मकड़ा ( आवचू २ पृ ७२ ) ।
कोलियापुडग -- मकड़ी का जाला - 'कोलियापुडगो मक्कडसंताणओ' ( निचू २ पृ ४०७ ) ।