देशीशब्दकोश /188
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कुविक -- होन अवयव वाला ( अंवि पृ १५३ ) ।
कुव्वरग -- खप्पर ( आवचू २ पृ २४७ ) ।
कुसण -- १ गोरस । २ पानक, मूंग की दाल आदि का पानी - 'कुसणं गोरसं पाणगं वा' (आचू पृ २५०) । ३ तीमन, कढी आदि व्यञ्जन ( पिनि २०२; दे २।३५ ) । ४ गोरस से बना हुआ करंबा आदि खाद्य ( पिनि २८२ ) ।
कुसत्त -- आस्तरण-विशेष ( ज्ञा १।१।१८ ) ।
कुसी -- कृमि की एक जाति ( अंवि पृ ७० ) ।
कुसुंभिल -- पिशुन, चुगलखोर ( दे २।४० ) ।
कुसुकुंडी -- मधुर सुरा विशेष (अंवि पृ २२१ ) ।
कुसुण -- दही आदि ( पिनि ६०७ ) ।
कुसुणित -- गोरस से बना हुआ करंबा आदि खाद्य - 'कुसुणितमपि करंबादिरूपतया कृतमपि' ( पिटी प ९१ ) ।
कुसुमण्ण -- कुंकुम ( दे २।४१ ) ।
कुसुमाल -- चोर ( दे २।१० ) ।
कुसुमालिअ -- अन्यमनस्क ( दे २।४२ ) ।
कुहंडिय -- ताला लगाना, ढकना - सा घरे छोढूण बाहिरि कुहंडिया' ( आवहाटी १ पृ १५० ) ।
कुहड -- कुब्ज, कूबड़ा ( पंव = ३२; दे २।३६ ) ।
कुहणय -- कुहन वनस्पति का एक प्रकार ( प्रज्ञा १।४७) ।
कुहव्वय -- कन्द-विशेष ( उ ३६।९७ ) ।
कुहाड -- कुल्हाड़ी, फरसा ( निचू २ पृ ५ ) ।
कुहावणा -- बहुरूपिये की वृत्ति से अर्थार्जन करना - वट्टादि इंदजालं, खेड्डा उ कुहावणा एसा' ( जीभा १७२१ ) ।
कुहिअ -- लिप्त, पोता हुआ ( दे २।३५ ) ।
कुहिणी -- १ कोहनी, कूर्पर । २ रथ्या, गली ( दे २।६२ ) ।
कुहिय -- वायु-विशेष, दौड़ते हुए अश्व के उदर प्रदेश के पास उत्पन्न होने वाला एक प्रकार का वायु-घणगज्जिय-हयकुहियं विज्जूदुग्गेज्झ गूढहियआओ' ( ग ९५ ) ।
कुहुण -- वनस्पति-विशेष ( भ २३।४ ) ।
कुहेड -- १ चमत्कार, मंत्र तंत्र के द्वारा झूठा चमत्कार ( उसुटी प २७१ ) । २ गुरेटक, एक प्रकार का हर्रे का गाछ ( दे २।३५ ) ।
कुव्वरग -- खप्पर ( आवचू २ पृ २४७ ) ।
कुसण -- १ गोरस । २ पानक, मूंग की दाल आदि का पानी - 'कुसणं गोरसं पाणगं वा' (आचू पृ २५०) । ३ तीमन, कढी आदि व्यञ्जन ( पिनि २०२; दे २।३५ ) । ४ गोरस से बना हुआ करंबा आदि खाद्य ( पिनि २८२ ) ।
कुसत्त -- आस्तरण-विशेष ( ज्ञा १।१।१८ ) ।
कुसी -- कृमि की एक जाति ( अंवि पृ ७० ) ।
कुसुंभिल -- पिशुन, चुगलखोर ( दे २।४० ) ।
कुसुकुंडी -- मधुर सुरा विशेष (अंवि पृ २२१ ) ।
कुसुण -- दही आदि ( पिनि ६०७ ) ।
कुसुणित -- गोरस से बना हुआ करंबा आदि खाद्य - 'कुसुणितमपि करंबादिरूपतया कृतमपि' ( पिटी प ९१ ) ।
कुसुमण्ण -- कुंकुम ( दे २।४१ ) ।
कुसुमाल -- चोर ( दे २।१० ) ।
कुसुमालिअ -- अन्यमनस्क ( दे २।४२ ) ।
कुहंडिय -- ताला लगाना, ढकना - सा घरे छोढूण बाहिरि कुहंडिया' ( आवहाटी १ पृ १५० ) ।
कुहड -- कुब्ज, कूबड़ा ( पंव = ३२; दे २।३६ ) ।
कुहणय -- कुहन वनस्पति का एक प्रकार ( प्रज्ञा १।४७) ।
कुहव्वय -- कन्द-विशेष ( उ ३६।९७ ) ।
कुहाड -- कुल्हाड़ी, फरसा ( निचू २ पृ ५ ) ।
कुहावणा -- बहुरूपिये की वृत्ति से अर्थार्जन करना - वट्टादि इंदजालं, खेड्डा उ कुहावणा एसा' ( जीभा १७२१ ) ।
कुहिअ -- लिप्त, पोता हुआ ( दे २।३५ ) ।
कुहिणी -- १ कोहनी, कूर्पर । २ रथ्या, गली ( दे २।६२ ) ।
कुहिय -- वायु-विशेष, दौड़ते हुए अश्व के उदर प्रदेश के पास उत्पन्न होने वाला एक प्रकार का वायु-घणगज्जिय-हयकुहियं विज्जूदुग्गेज्झ गूढहियआओ' ( ग ९५ ) ।
कुहुण -- वनस्पति-विशेष ( भ २३।४ ) ।
कुहेड -- १ चमत्कार, मंत्र तंत्र के द्वारा झूठा चमत्कार ( उसुटी प २७१ ) । २ गुरेटक, एक प्रकार का हर्रे का गाछ ( दे २।३५ ) ।