2023-03-02 09:01:09 by श्री अयनः चट्टोपाध्यायः

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कियाडिया -- कान का ऊपरी भाग - 'तं चेल्लगं कियाडियाए घेत्तुं सीसे खडुक्क दाउं••••' ( व्यभा १ टी प १३) ।
किर -- सूकर, सूअर ( दे २।३० ) ।
किराड -- खुदरा माल बेचने वाला व्यापारी ( कु पृ १०६ ) ।
किराडय -- व्यापारी - 'जाहि किराडयं उच्छिष्णं मग्गाहि' ( आवहाटी २ पृ २२१ ) ।
किरि -- ज्येष्ठ, बड़ा- 'सिरिओ वि किरि भायनेहेण कोसाए गणियाए घरमल्लियइ' ( उसुटी प ३० ) ।
किरिइरिआ -- १ कर्णोपकर्णिका, एक कान से दूसरे कान गई हुई बात । २ कुतूहल ( दे २।६१ ) ।
किरिकिरिया -- बांस आदि की कम्बा से निष्पन्न वाद्य-विशेष ( आचूला ११।३ ) ।
किरीडय -- रेशम का कीड़ा - 'किरीडयलाला मलयविसए मयलाणि पत्ताणि कोविज्जति' ( निचू २ पृ ३९९ ) ।
किलणी -- रथ्या, गली ( दे २।३१ ) ।
किलिंच -- बांस की खपची ( द ४ सू १८; दे २।११ ) ।
किलिम्मिअ -- कथित उक्त ( दे २।३२ ) ।
किविड -- १ खलिहान, अन्न साफ करने का स्थान । २ खलिहान में जो हुआ हो वह ( दे २।६० ) ।
किविडी -- १ पार्श्वद्वार । २ घर का पिछला आंगन ( दे २।६० ) ।
किविल्लिका -- कीट-विशेष ( अंवि पृ २५३ ) ।
किविल्लिग -- क्षुद्र जन्तु ( अंवि पृ २२९ ) ।
किसोर -- घोड़ी का गर्भस्थ बच्चा ( निचू ३ पृ ४११ ) ।
कोकीडी -- चींटी - 'जस्स कीडीओ खायंति उत्तमंगं' ( आवदी प १६८ ) ।
कीर -- शुक, तोता ( दे २।२१ ) ।
कोकील -- १ कंठ - 'कीलेहिं विज्झंति असाहुकम्मा' - कीलेषु - कण्ठेषु ( सूटी १ प १२९ ) । २ स्तोक, अल्प ( दे २।२१ ) ।
कोकीलणिआ -- रथ्या, गली ( दे २।३१ ) ।
कोकीलणी -- रथ्या ( दे २।३१ वू )
कीला -- नववधू, दुलहिन ( दे २।३३ ) ।
कुइग -- दही के ऊपर का नितरा हुआ पानी - 'कूचिका नाम दध्न उपरि