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• देशी शब्दकोश
 
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किड्ढि–वृद्धा-'अणिच्छे किड्ढि साविया धोवति' (निचू ३ पृ १०६ )।
किड्ढी— समझा बुझाकर संभोग के लिए एकांत में ले जाई जाने वाली स्त्री
(व्यमा ४ । ३ टीप ५७ ) ।
 
किढ – वृद्ध, बूढा (बृभा ४१४१ ) ।
 
किढग - वृद्ध - 'जह किढगाण विमोहो समुदीरति किं तु तरुणाणं'
(व्यभा ७ टीप ४१) ॥
 
किढि – १ वृद्धा ( निचू २ पृ ३७६ ) ।
 
किढिण - तापसों का पात्र विशेष जो बांस से बना हुआ होता है
( भ १११६४ ) ।
 
किढिया - वृद्धा (निभा २२३२ ) ।
 
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किढी -- १ काठ लाने वाली (आवहाटी १ पृ १५८) । २ वृद्धा, स्थविरा
( बृभा १९५६ ) ।
 
किणिक-वाद्यों को चर्म से मढने वाले शिल्पी (व्यमा ४ । ३ टीप २१ ) ।
किणिकाण – वाद्य-विशेष (आवचू १ पृ ३०१) ।
 
किणिय -- १ जो वादित्रों को चर्म आदि से मढने का काम करते हैं ।
२ जो नगर में घुमाते हुए ले जाने वाले वध्य पुरुषों के आगे
वादित्र बजाते हैं (व्यभा ४ । ३ टीप २१ ) ।
 
किणिह -कृमि की एक जाति (अंवि पृ ७०) ।
किणो – क्यों, किसलिए ? (प्रा २१२१६) ।
किण्ण–शोभित, सुन्दर ( दे २१३० ) ।
किण्णि-मदिरा का मैल - सुराए किण्णिमादिकिट्ठिसंपक्कस'
( निचू ४ पृ २२३ ) ।
 
किण्ह - १ सूक्ष्म वस्त्र । २ श्वेत वर्ण ( दे २।५६) ।
किण्हपत्त – चतुरिन्द्रिय जीव-विशेष (प्रज्ञा १७५१ ) ।
कित – चुंगी लेने वाला (व्यभा २ टीप १५ ) ।
किपिल्लक-प्राणी- विशेष ( अंवि पृ ६६ ) ।
किपिल्लिका – कृमि की एक जाति (अंदि पृ ७० ) ।
किमिराय – लाख से रंगा हुआ वस्त्र ( दे २ ३२ ) ।
किमिहरवसण-कौशेय वस्त्र, रेशमी वस्त्र (दे २।२३) ।
कियत– चुंगी लेने वाला - २
'सुंकठाणेसु कियतो उवद्वितो भणइ'
( व्यभा २ टीप ६५) ।
 
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