देशीशब्दकोश /178
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किड्ढी
(
किढ
किढग -- वृद्ध - 'जह किढगाण विमोहो समुदीरति किं तु तरुणाणं'
(
किढि
किढिण -- तापसों का पात्र विशेष जो बांस से बना हुआ होता है
किढिया -- वृद्धा ( निभा २२३२ ) ।
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किढी -- १ काठ लाने वाली (आवहाटी १ पृ १५८) । २ वृद्धा, स्थविरा
( बृभा १९५
किणिक-वाद्यों को चर्म से मढने वाले शिल्पी (व्यमा ४ । ३ टीप २१ ) ।
किणिकाण – वाद्य-विशेष (आवचू १ पृ ३०
किणिय -- १ जो वादित्रों को चर्म आदि से मढने का काम करते हैं ।
२ जो नगर में घुमाते हुए ले जाने वाले वध्य पुरुषों के आगे
वादित्र बजाते हैं (व्यभा ४ । ३ टीप २१ ) ।
किणिह -कृमि की एक जाति (अंवि पृ ७०) ।
किणो – क्यों, किसलिए ? (प्रा २
किण्ण–शोभित, सुन्दर ( दे २
किण्णि-मदिरा का मैल - सुराए किण्णिमादिकिट्ठिसंपक्क
( निचू ४ पृ २२३ ) ।
किण्ह - १ सूक्ष्म वस्त्र । २ श्वेत वर्ण ( दे २।५
किण्हपत्त – चतुरिन्द्रिय जीव-विशेष (प्रज्ञा १
कित – चुंगी लेने वाला (व्यभा २ टीप
किपिल्लक-प्राणी- विशेष ( अंवि पृ ६६ ) ।
किपिल्लिका – कृमि की एक जाति (अंदि पृ ७० ) ।
किमिराय – लाख से रंगा हुआ वस्त्र ( दे २
किमिहरवसण-कौशेय वस्त्र, रेशमी वस्त्र (दे २।२३) ।
कियत– चुंगी लेने वाला -
( व्यभा २ टीप
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