देशीशब्दकोश /176
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कालेज्ज -- १ कलेजा, हृदयवर्ती मांस-खंड ( सूनि ७३ ) । २ तमाल वृक्ष का पुष्प ( दे २।२९ वृ ) ।
कालेयक -- फल-विशेष ( अंवि पृ २३२ ) ।
काव -- कांवर वहन करने वाला ( जीव ३।६१६ ) ।
कावलिअ -- असहिष्णु ( दे २।२८ ) ।
कावी -- नीलवर्ण वाली ( दे २।२६ ) ।
कावेल्ली -- पात्र-विशेष ( अनुद्वाहाटी पृ ७९ )।
कावोडि -- कांवर ( आवहाटी २ पृ ४४ ) ।
कावोडी -- कांवर - #बालादिसल्लविद्धवहणट्ठा कावोडी' ( निचू ४ पृ १०९ ) ।
कावोय -- कांवर वहन करने वाला ( अनुद्वामटी प ४२ ) ।
कास -- गुच्छ वनस्पति विशेष ( प्रज्ञा १।३७।४ ) ।
कासार -- सीसकपत्र, सीसे की चादर ( Lead- Sheet ) ( दे २।२७ ) ।
कासिअ -- १ सूक्ष्म वस्त्र । २ श्वेत वर्ण ( दे २।५९ ) ।
कासिज्ज -- काकस्थल नामक देश ( दे २।२७) ।
काहल -- १ वाद्य-विशेष ( भटी पृ ८८३ ) । २ मृदु । ३ ठग ( दे २।५८ ) ।
काहली -- तरुणी ( दे २।२६ ) ।
काहल्ली -- १ प्रतिदिन उपभोग में आने वाला धान्य आदि । २ तपनी, तवी, रोटी आदि बनाने-सेकने का साधन ( दे २।५९ ) ।
काहार -- १ नक्षत्र का संस्थान विशेष ( सूर्य १०।२८ ) । २ कहार, जल आदि लाने वाला कर्मकर ( दजिचू पृ १२९ ; दे २।२७ ) ।
काहिल -- गोपाल, ग्वाला ( दे २।२८ ) ।
काहिल्लिआ -- तवा ( पा ६३९ ) ।
काहेणु -- गुंजा, लाल रत्ती ( दे २।२१ ) ।
किंकाणत -- कृकाटिका, गरदन का पिछला भाग ( सूचू १ पृ १३८ ) ।
किंकिअ -- सफेद, श्वेत ( दे २।३१ ) ।
किंखाइ -- फिर कैसे से किं खाइ णं भंते ! ' ( भ २ । १३४ ) - 'किं खाईं ति अथ किं पुनरित्यर्थ:' ( भटी प १४९ ) ।
किंखाति -- फिर कैसे ( भटी प १४८ ) ।
किंजक्ख -- शिरीष वृक्ष ( दे २।३१ ) ।
किंधर -- छोटी मछली ( दे २।३२ ) ।
किंपअ -- कृपण, कंजूस ( दे २।३१ ) ।
कालेयक -- फल-विशेष ( अंवि पृ २३२ ) ।
काव -- कांवर वहन करने वाला ( जीव ३।६१६ ) ।
कावलिअ -- असहिष्णु ( दे २।२८ ) ।
कावी -- नीलवर्ण वाली ( दे २।२६ ) ।
कावेल्ली -- पात्र-विशेष ( अनुद्वाहाटी पृ ७९ )।
कावोडि -- कांवर ( आवहाटी २ पृ ४४ ) ।
कावोडी -- कांवर - #बालादिसल्लविद्धवहणट्ठा कावोडी' ( निचू ४ पृ १०९ ) ।
कावोय -- कांवर वहन करने वाला ( अनुद्वामटी प ४२ ) ।
कास -- गुच्छ वनस्पति विशेष ( प्रज्ञा १।३७।४ ) ।
कासिअ -- १ सूक्ष्म वस्त्र । २ श्वेत वर्ण ( दे २।५९ ) ।
कासिज्ज -- काकस्थल नामक देश ( दे २।२७) ।
काहल -- १ वाद्य-विशेष ( भटी पृ ८८३ ) । २ मृदु । ३ ठग ( दे २।५८ ) ।
काहली -- तरुणी ( दे २।२६ ) ।
काहल्ली -- १ प्रतिदिन उपभोग में आने वाला धान्य आदि । २ तपनी, तवी, रोटी आदि बनाने-सेकने का साधन ( दे २।५९ ) ।
काहार -- १ नक्षत्र का संस्थान विशेष ( सूर्य १०।२८ ) । २ कहार, जल आदि लाने वाला कर्मकर ( दजिचू पृ १२९ ; दे २।२७ ) ।
काहिल -- गोपाल, ग्वाला ( दे २।२८ ) ।
काहिल्लिआ -- तवा ( पा ६३९ ) ।
काहेणु -- गुंजा, लाल रत्ती ( दे २।२१ ) ।
किंकाणत -- कृकाटिका, गरदन का पिछला भाग ( सूचू १ पृ १३८ ) ।
किंकिअ -- सफेद, श्वेत ( दे २।३१ ) ।
किंखाइ -- फिर कैसे से किं खाइ णं भंते ! ' ( भ २ । १३४ ) - 'किं खाईं ति अथ किं पुनरित्यर्थ:' ( भटी प १४९ ) ।
किंखाति -- फिर कैसे ( भटी प १४८ ) ।
किंजक्ख -- शिरीष वृक्ष ( दे २।३१ ) ।
किंधर -- छोटी मछली ( दे २।३२ ) ।
किंपअ -- कृपण, कंजूस ( दे २।३१ ) ।