2023-03-01 10:19:29 by श्री अयनः चट्टोपाध्यायः

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कवल्ल -- १ तवा - 'तत्तंसि अयकवल्लंसि उदयबिंदुं पक्खिवेज्जा' ( भ ३।१४८ ) । २ कडाही ( सू १।५।१५ ) ।
कवल्लि -- कडाह - 'डज्झंतेण वि गिम्हे कालसिलाए कवल्लिभुयाए ( सं ११९ ) ।
कवल्ली -- १ पकाने का भाजन विशेष ( विपा १।३।२ ) । २ कडाह ( अंवि पृ ७२ ) ।
कवल्लुय -- कडाही ( ति ९५१ ) ।
कवल्लूर -- कडाही ( सूचू २ पृ ४४४ ) ।
कवास -- अर्धजंघा, एक प्रकार का जूता ( दे २।५ ) ।
कविचिया -- पात्र-विशेष, कलाचिका ( भ ११।१५९ ) ।
कविड -- घर का पिछला आंगन ( दे २।९ ) ।
कविल -- कुत्ता ( दे २।६ ) - 'अलस ! ण लज्जसि कविलोव्व कडसीए' ( वृ ) ।
कविल्ली -- पात्र-विशेष ( अनुद्वामटी प १४६ ) ।
कविल्लुय -- कडाही ( आचू पृ ३७३ ) ।
कविस -- मद्य, मदिरा ( दे २।२ ) ।
कविसा -- अर्धजंघा, एक प्रकार का जूता ( दे २।५ ) ।
कवेली -- पात्र-विशेष ( अनुद्वाचू पृ ५४ ) ।
कवेल्लक -- लोहे का पात्र विशेष ( भ ३।४८ ) ।
कवेल्लुअ -- खपरैल ( स्था ८।१० ) ।
कवेल्लुग -- १ तवा ( जंबू २।१४१ ) । २ खपरैल, खापड़
( आवचू २ पृ २३ ) ।
कवेल्लुय -- कडाही ( जंबूटी प २२ ) ।
कवोडी -- कांवर ( निचू ३ पृ २१३ ) ।
कव्व -- १ पानी उलीचने का पात्र-विशेष - 'उत्तिंगादिणावाए चिट्ठमुदगं अण्णयरेण कव्वादिणा उस्सिंचणएण उस्सिंचइ' ( निचू ४ पृ २०९ ) ।
कव्वय -- काष्ठपात्र - 'कव्वयं तं पि कट्ठमयं ( पत्तं ) ' ( निचू ३ पृ ३४३ ) ।
कव्वाड -- १ ठेके पर भूमि खोदने वाला ( स्था ४।१४७ पा ) । २ दाहिना हाथ ( दे २।१० ) ।
कव्वाल -- १ ठेके पर भूमि खोदने वाला- 'कव्वालो खितिखणतो उड्डमादी' ( निचू ३ पृ २७३ ) । २ कर्म स्थान, प्रवृत्ति का स्थान । ३ घर ( दे २।५२ ) ।