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कण्णविवोड– कान खींचना (बूटी पृ १५२३) ।
कण्णस्सरिअ—कानी नजर से देखना, कटाक्ष ( दे २१२४) ।
कण्णाआस – कान का आभूषण, कुण्डल आदि (दे २१२३ ) ।
कण्णाइंधण - कान का आभूषण, कुंडल आदि ( दे २ । २३ ) 1
कण्णाउडय – कान मरोडना - कुंभकारेण तस्स खुड्डगस्स कण्णाउडओ दिण्णो'
(आवचू १पृ ६१४) ।
 
कण्णाकण्णि– आकंठ - 'कण्णाकण्णि भरिते' (निचू ४ पृ १५९ ) ।
 
देशी शब्दकोश
 
कण्णास – पर्यन्त, अन्त भाग ( दे २ । १४) ।
 
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कण्णासय–पर्यन्त - रच्छाकण्णासयम्मि दट्ठूण' ( दे २ । १४ वृ) ।
कण्णाहड – कर्णाकणिकया- अम्हं आयरियाणं सुतीए कण्णाहडं च सोउं जे '
(ति ७०७) ।
 
कण्णाहाडिय–कानों से गुपचुप सुनकर जान लेना- तेण तेसिं पासओ
विज्जा कण्णाहाडिया' (आवहाटी १ पृ २७४) ।
 
कण्णाहेडित – कान लगाकर सुनना - गुरुसमीवातो तेणागतं, ण कण्णाहेडितं'
(अनुद्वाचू पृ८ ) ।
 
कण्णिवल्लि – वनस्पति विशेष (अंवि पृ५) ।
 
कण्णु – मकान का अग्रभाग आदि ( ? ) - (तत्थ जूयं खेल्लिमो, खत्तं खणिमो
कण्णुं तोडिमो, पंथं मूसिमो' ( कु पृ ५७ ) ।
 
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कण्णोच्छडिया - १ दत्तकर्णा, ध्यानपूर्वक सुनने वाली स्त्री । २ प्रत्युत्तर
करने के लिए दूसरे की बात को पकड़ने वाली ( दे २ । २२ ) ।
 
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कण्णोड्डिया – नीरंगिका, घुंघट, आवरण ( दे २१२०) ।
कण्णोड्डी - -घुंघट, नीरंगिका - मंच कणोड्ढि' ( दे २१२० वृ ) ।
 
कण्णोढत्ती .१ दत्तकर्णा, ध्यानपूर्वक सुनने वाली स्त्री । २ प्रत्युत्तर करने
के लिए दूसरे की बात को पकड़ने वाली (दे २ । २२ ) ।
 
कण्णोल्ली – १ चोंच । २ अवतंस, कलंगी ( दे २१५७ ) ।
 

 
कण्णोस्सरिअ – १ कानी नजर से देखना, कटाक्ष, टेढ़ी नजर से देखना
(दे २१२४) । २ टेढ़ी नजर से देखा हुआ ( वृ ) ।
 
कण्ह - -१ वल्ली विशेष, जटामासी (प्रज्ञा १॥४० ) । २ हरित वनस्पति-
विशेष, कृष्ण तुलसी (प्रज्ञा ११४४) 1
कण्हगुलिका – बिलाशयी
सेतगुलिका
 
कण्हगुलिका
 
जंतु- विशेष - तत्थ बिलासयेसु
खुल्लिका' (अंवि पृ २२६) ।
 
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